आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Wednesday, February 9, 2011

वसन्त

हर साल आता है वसन्त
ॠतु-संधि के रोमांच को बढ़ाता
पेड़ों पर नई कोपलें सजाता
खेतों में पीली सरसों की चादरें लहराता
प्रणयी हृदयों को भरपूर गुदगुदाता
बाल-युवा-बृद्ध सब में
होली के रंगों में सराबोर होने की
उम्मीदें-आकांक्षाएं जगाता।

चलो, मुट्ठी में भर लें कस कर
इस बार सज कर सामने आए
इस सलोने वसन्त को
अगली गर्मी, वर्षा व शीत को भी
निरापद बनाए रखने के लिए।

चलो, आँखों में समेट लें जी भर कर
वृक्ष-लताओं की पोरों पर
उमंग से भर कर कुचकुचाये
इस रंगीले वसन्त को
भविष्य की शुष्कता, उजाड़पन व ठिठुरन में भी
थोड़ी सी जीवंतता बचाए रखने के लिए।