आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Thursday, February 19, 2015

उमेश चौहान की अवधी कविताएँ

सोन-चिरैया

का भारत सोन - चिरैया है?

केतनेउ नदी - पहाड़ सजीले, जंगल सदाबहारा,
गंगा - जमुना असि दोआब हैं, तबहूँ भूखी मैया है।
का भारत सोन - चिरैया है?

यहिमाँ पढ़े सुवा ब्वालति हैं, लगैं जोर के नारा,
कहाँ पलटुआ, कहाँ घसीटे, कौने ठौर हिरैया है।
का भारत सोन - चिरैया है?

माटी म्वाल बिकाय हियाँ, कस बरतन गढ़ी कुम्हारा,
दादा बड़ा न भैया, अब तौ सबते बड़ा रुपैया है।
का भारत सोन - चिरैया है?

कम्प्यूटर जो पढ़ै न वहिका कतहू नहीं गुजारा,
दिन भरि ढ्वावै डेलिया - टोकनी, राति माँ टूटि मड़ैया है।
का भारत सोन - चिरैया है?

सजैं देवारी चीन कै लड़ियाँ, अब चीनी पिचकारी,
चीनै ते एनिमेटेड होइकै टीवी सजा कन्हैया है।
का भारत सोन - चिरैया है?

नीति - न्याय की खुलीं दुकानै, हाकिम खांय मलाई,
माँगैं भीख, मरै घुटि - घुटि कै, कोटि - कोटि बिलखैया हैं।
का भारत सोन - चिरैया है?
(2013)

ज़मीन हमरी लै लेउ

लै लेउ!
अब जमीन हमरी लै लेउ!

खेतु लेउ!
खलिहानु लेउ!
ऊसरु लेउ!
उपजाऊ लेउ!
जौनि चाहौ तौनि लेउ!
पुरिखन कै थाती लेउ!
बुझे दिया कै बाती लेउ!
प्रानन ते पियारी लेउ!
अँसुवन कै कियारी लेउ!
लै लेउ! सरकार अब लै ही लेउ!

कर्जु सहा जाति नहीं,
बीजु बोवा जाति नहीं,
आत्महत्याकारी भूमि लै ही लेउ!
जौनु भाव चाहौ हमैं तौनु देउ!
कौनौ औरु जियै का सहारा देउ!
सूखि गईं ईंटन मां गारा देउ!

दवा देउ!
दारू देउ!
गाड़ी याक मारू देउ!
इज्जत देउ,
पहिचान देउ!
नौकरी देउ!
अरमान देउ!
माटी कै मड़ैया अब
लरिकनौ का ना चाही,
सूखि गए बेरवन मां
कहाँ कौनिउ छाँह बाकी,
हमैं तो अब उड़ै का अकासु चाही,
हमैं तो अब बूड़ै का पतालु  चाही,
चुल्लू भरि पानी मां अब डूबि मरै का मनु नाही!

सेज़ के नाम पै लै लेउ!
पॉवर प्लान्ट के नाम पै लै लेउ!
मल्टीनेशनल कै खातिर लै लेउ!
एक्सप्रेस हाइवे कै खातिर लै लेउ!
लैंड बैंक के खाता मां लै लेउ!
जौने नाम ते चाहौ लै लेउ!

लै लेउ! यह धरती लेउ!
फसलन कै अरथी लेउ!
सगरी ठकुरसुहाती लेउ!
फारि कै हमरी छाती लेउ!
काँधेन ते हरु खींचि - खींचि,
पसीना ते ख्यात सींचि - सींचि,
बीति गवै उमिरि सारी,
मिटी ना कबहूँ उधारी,
अब तो है हिम्मत हारी,
लै लेउ यह जमीन सारी,
हम ते अब किसानी कै पहिचान सारी लै लेउ!
(2012)

उनका हालु न पूछौ भैया

उइ पैदा तौ भे रहैं हिंयै
गाँवैं कै कौनिउ सौरि माँ
तेलु - बाती कै उजेरिया माँ
उइ पले - बढ़े रहैं हिंयै
माटी माँ लोटि - पोटि,
भैंसिन का दूधु - माठा
भूड़न के बेर - मकोइया
ओसरिन कै गुल्ली - डंडा
पतौरिन कै लुका - छिपी
अंबहरी कै लोय - लोय
निम्बहरी का सावन - झूला
अरहरिया कै रासु - लीला
दुपहरिया के ताश - पत्ता
कैसे बिसराय सबै
उइ ब्वालै लागि अंगरेज़ी
उइ बसे नई दुनिया माँ
उइ रोमु - रोमु बदलि गए
बहुतन के भाग्य - विधाता भे
अबु उनका हालु पूछौ भैया।

उइ कबौ - कबौ आवति हैं
गर्दा ते मुँहु बिचकावति हैं
पत्नी का नकसा औरु बड़ा
अमरीकी फैशनु खूबु चढ़ा
लरिकन का हिन्दिउ ना आवै
अंगरेज़िउ उच्चारनु दूसर
उनका स्वदेसु अब ना भा भावै
उनकै पैदाइस हुँवै केरि
उनका स्वदेसु अमरीकै भा
देवकी माता जस भारत है,
चाहत माँ कौनिउ कमी नहीं
स्कूलु गाँव माँ खोलि दिहिन
लरिका अंगरेज़ी सीखि रहे
कम्प्यूटरु माँ सीडी ब्वालै
उच्चारनु सीखैं अमरीकी
उनकी इच्छा अब याकै है
अमरीका माफ़िक बनै गाँव
लेकिन अंगद का पांव गाँव
यहु जहाँ रहै, है जमा हुँवै
उइ येहिके लिए बहेतू भे
परदेसी भे, उपदेसी भे,
अबु उनका हालु पूछौ भैया।
(2012)

काहे बुझी सोच कै बाती

काहे चेहरा है मुरझावा,
काहे बुझी सोच कै बाती?

काहे सूखैं ताल - तलैया?
काहे सूखै नगवा नाला?
काहे सूखैं आम - निबहरी?
काहे सूखै भुइंया झाड़ा?
काहे सूखै बुढ़वा बरगदु?
काहे तुम धरती का चूसेउ
मोटे - मोटे पाइप डारि कै?
काहे यहिका हिया सुखायो?
अब काहे तुम पीटौ छाती?

काहे चेहरा है मुरझावा,
काहे बुझी सोच कै बाती?

काहे गायब भईं गौरैया?
काहे गायब हरहा - गोरू?
काहे गीध - चील भे गायब?
काहे गायब जल ते मछरी?
काहे गायब भईं बटेरैं?
काहे रोवैं मोर - पपीहा?
काहे सिसकैं कोयल - मैना?
काहे जहरु भरेउ कन - कन माँ,
फारेउ धरती कै बरसाती?

काहे चेहरा है मुरझावा,
काहे बुझी सोच कै बाती?

काहे जोति लेहेउ गलियारा?
काहे माली बागु उजारा?
काहे इरखा माँ डूबे सब
काहे म्याड़ैं खायं ख्यात का?
काहे ग्वाबरु - कंडा गायब?
काहे पांसि नहीं झौआ भरि?
काहे अन्नु रसायन बोरे?
काहे होरी के रंग फीके?
नहीं देवारी हमैं सोहाती?

काहे चेहरा है मुरझावा,
काहे बुझी सोच कै बाती?
(2011)

प्रेमी कै जातना

सुरज बैठे रोजु बाढ़ै
जियरा मां धुकधुकी,
तनिकु - तनिकु अँधेरु फैलै,
हिरदय मां हुलास जागै,
अँधेरिया पाख मां औरउ ज्यादा,
गांव के गोंइड़हरे पर
बेरवन के झुरमुट मां
काली - काली छांही मां द्याह ढ़ाँकि
बैठि रोजु राह ताकै
गाँव का चित - चोर बाँका।

साँवरी सँवरि निकरै
धीरे - धीरे देहरी ते
लोटिया दाबि हाथे मां,
रस्ता मां लपकि लेय
मिलै का मनमोहना ते,
लिपटि जाय,
सिमटि जाय,
जैसे ब्लैक होल मां
ब्रह्माण्ड सबै मिटि जाय,
पुरवा कै झकोर झूमै,
नाचै मन - मोर लागै,
सांसन कै डोर भागै,
करेजेन मां प्यास जागै,
ना बुझाय, कबहूँ ना बुझाय,
केतनौ मिलैं पर ना बुझाय।

अंधकार मिलवावै,
उजियारा बिलगावै,
समय कै चिरैया उड़ै
उम्मीदन के पंख धारि,
मन के क्षितिज मां वह
रोजु खूब रसु घ्वारै,
प्रेम - धनु सतरंग ब्वारै,
धरती - अकासु ज्वारै,
यही तना जमै रोजु
बेरवन की छाहीं मां
सुखु - दुखु कै खटमिट्ठी जुगुलबंदी।

याक दिन फिरि आही गवै
वोहू घरी,
साँवरी सजि डोली चढ़ी,
नैहर कै पीर पगी,
रोवति बेजार चली,
सहसा मुसकाय उठी,
आँखीं जब चारि मिलीं,
रोकि अपने अँसुवन का,
गाँव के किनारे खड़े
प्रेमी का निहारै लागि
फिरि एकदमै सकुचाय गवै,
देखि कै घर वालेन का
बहुतै शरमाय गवै,
आँखिन मां आँखी डारे
विदा होइगै राति कै रानी,
अँखियाँ होइ गईं पानी-पानी,
लैगे कहार वहिका
नदिया के पार कहूँ,
सूनु भा अब प्रेमी का संसार,
तड़पै वहु रोज़ अपने मिलन के ठांव,
भेदु तनिकौ ना जानै गाँव,
भरे निज आँखिन मां अँधेरु,
लादि मन मां दुखु क्यार सुमेरु,
सुरज बैठे बाढ़ै लागै प्रेमी कै जातना।
(2011)

शहर बनाम गाँव

शहर कै सुबह बड़ी संगीन।
गाँव का भोरु बड़ा रंगीन॥

सुरुज आँखी फैलाए ठाढ़,
लखै मनइन कै अदभुद बाढ़,
गली - कूँचा हैं येतने तंग,
हुवां रवि कै है पहुँच अपंग,
सबेरहे हार्न उठे चिल्लाय,
मील का धुवां सरग मंडराय,
जिन्दगी भाग - दौड़ मां लीन।
शहर कै सुबह बड़ी संगीन॥

सुरुज कै लाली परी देखाय,
बिरछ सब झूमि उठे इठलाय,
कोयलिया रागु सुनावै लागि,
बयरिया तपनि बुझावै लागि,
नदी - तट चहकैं पक्षी - वृन्द,
फिरैं सब लोग बड़े स्वच्छंद,
जिन्दगी प्रेम - सुधा मां लीन।
गांव का भोरु बड़ा रंगीन॥

सभ्यता उड़ै पंख फैलाय,
कृत्रिमता अंग - अंग दरसाय,
जहाँ पानी तक म्वाल बिकाय,
प्रदूषित वातावरण देखाय,
जहाँ छल - छंदु मचावै रंग,
प्रकृति ते होय नित हुड़दंग,
फिरै सारा समाजु गमगीन।
शहर कै सुबह बड़ी संगीन॥

किसनवा हर ते धरती फारि,
लाग अमिरुत कै करै फुहार,
हरेरी चूनरि धरती धारि,
किहिसि सब गाँवन का सिंगारु,
सुंगन्धै भरिन जंगली लता,
हृदय हुलसायिसि कंचन - प्रभा,
प्रकृति निज सुंदरता मां लीन।
गांव का भोरु बड़ा रंगीन॥
(1998)

जउनी गली जाऊँ

जउनी गली जाऊँ, आगी बरसै मुलुक मां।

गंगा की धार, रावी, सतलुज की धार मां,
ब्रह्मपुत्र, कृष्णा, कावेरी कछार मां,
इरखा बढ़ी है, खूनु बरसै मुलुक मां।
जउनी गली जाऊँ, आगी बरसै मुलुक मां॥

मनई का भारी होइगै, मनई कै देहिया,
लोग भे बनैले, बनु होइगै सारी दुनिया,
जुलुम की आंच द्याहैं झरसैं मुलुक मां।
जउनी गली जाऊँ, आगी बरसै मुलुक मां॥

अल्ला, राम बिहंसैं रकतु बरसाए ते,
वाहे गुरू खुश होएं अरथी चढ़ाए ते,
दानवी क्रिया ते देव हरसैं मुलुक मां।
जउनी गली जाऊँ, आगी बरसै मुलुक मां॥

पेमु गा बिलाय, सुखु गुलरी का फूलु भा,
धरमु, करमु सबु गुलरी का फूलु भा,
घर के घरौआ बिसु परसैं मुलुक मां।
जउनी गली जाऊँ, आगी बरसै मुलुक मां॥
(1983)

पन्द्रह अगस्त

जैसे जलवायु बदलि एकदम ते सूपन जलु ढरकावत है।
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसइ आज़ादी आवत है॥

कबहूँ झूरा, कबहूँ बहिया, मनई व्याकुल घरु - कुरिया मां,
असि कीमति वहिकै घटी मनौ लगि राहु - केतु गे रुपया मां,
जिनका हम समझा कर्णधार, उइ करनी करि घरु भरै लागि,
गांधी - नेहरू कै कसम खाय, व्यापार वोट का करै लागि,
जैसे घनघोर अँधेरिया मां जुगनूँ प्रकाश फैलावत हैं।
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसइ आज़ादी आवत है॥

मनई का मनई चूसि रहा, कुछु इरखा - दोखु ऐसु बढ़िगा,
जस मेझुकी किरवन का लीलिस, मेझुकी का सांपु चट्ट करिगा,
दुमुही असि जिम्मेदार हियां, जिनका बसि दौलत प्यारी है,
जेतना आगे वोतनै पीछे, इनकै कुछु हालति न्यारी है,
जैसे चम्पा कै झूरि कलिउ सगरी बगिया महकावति है।
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसइ आज़ादी आवत है॥

सबु कीन धरा माटी मिलिगा, छल - छंद क्यार रोजगारु चढ़ा,
जस काटे ते हरियाय दूब, वैसइ दुइ नम्बरदार बढ़ा,
घर मां अभियान चला अस की, आबादी मां खुब रंग सजे,
जैसे ई तैंतीस सालन मां, अस्सी करोड़ देवता उपजे,
जैसे चौराहे पर कसिकै हरि गाड़ी बिरिक लगावत है।
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसइ आज़ादी आवत है॥

अब चंद्रयान पूजौ लेकिन पूंजिव का तो कुछु ख्याल करौ,
जो कर्जु चढ़ा हरि मूड़े पर, वोहिका तो तनिक मलाल करौ,
अंग्रेज़न यहिका खुब चूसा, दुइजहा देशु यहु भारत है,
परि जाई ज्यादा बोझु अगर, तौ यहिका मरबु यथारथ है,
जैसे स्वाती की बूँदिन ते पपिहा निज प्यास बुझावत है।
पन्द्रह अगस्त का भारत मां वैसइ आज़ादी आवत है॥
(1980)

म्वार देसवा हवै आजाद

म्वार देसवा हवै आज़ाद, हमार कोउ का करिहै।

कालेज़ ते चार - पाँच डिग्री बटोरिबै,
लड़िबै चुनाव, याक कुरसी पकरिबै,
कुरसी पकरि जन - सेवक कहइबै,
पेट्रोल - पंपन के परमिट बटइबै,

खाली गुल्लक करब आबाद, हमार कोउ का करिहै।
म्वार देसवा हवै आजाद, हमार कोउ का करिहै।।

गाँधी रटबु रोजु आँधी मचइबै,
किरिया करबु गाल झूठै बजइबै,
दंगा मचइबै, फसाद रचइबै,
वोटन की बेरिया लासा लगइबै,

फिरि बनि जइबै छाती का दादु, हमार कोउ का करिहै।
म्वार देसवा हवै आजाद, हमार कोउ का करिहै।।

संसद मां बैठि रोजु हल्ला मचइबै,
देसी विदेसी मां भासनु सुनइबै,
घर मां कोऊ स्मगलिंग करिहै,
कोऊ डकैतन ते रिश्ता संवरिहै,

धारि खद्दर बनब नाबाद, हमार कोउ का करिहै।
म्वार देसवा हवै आजाद, हमार कोउ का करिहै।

बहुरी समाजवाद जब हम बोलइबै,
आँखिन मां धूरि झोंकि दारिद छिपइबै,
भारत उठी जब - जब हम उठइबै,
भारत गिरी जब - जब हम गिरइबै,

कोऊ अभिरी करब मुरदाद, हमार कोउ का करिहै।
म्वार देसवा हवै आजाद, हमार कोउ का करिहै।
(1978)

भारत भुइं तुम्है बोलाय रही

भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ।
झाखरु कटिगा मुलु ठूँठु ऐसि, अब ना ख्यातन मां खड़े रहौ॥

सोने कै चिड़िया माटी भै, कुछु मति हमारि अस काटी गै,
सत मंजिला कै बसि नींव सुनौ खाली बरुआ ते पाटी गै,
ढहि गईं मंजिलै अलग न तुम निचली मंजिल मां परे रहौ।
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ।।

भुइं मोरि चंदरमा ऐसि रहै, मुलु राहु-केतु सब गांसि लिहिन,
परदेसी चतुर चिरैयन का चुपके लासा मां फांसि लिहिन,
अब इधर बढ़ौ या उधर बढ़ौ, ना चौराहे पर खड़े रहौ।
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ।।

तुम्हरे असि जूनन के द्वारा जो मानवता का बोझु बंधा,
वहु छूटि बिथरि गा मुला तबौ जूना अस ऐंठबु तुम्हैं सधा,
चिलवलि की तितुली जैसे तुम ना हवै हवा मां उड़े रहौ।
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ।।

मंगता कुबेर के लरिका भे, हथिनी के पैदा मूसु भवा,
उइ कांटा पांयन सालि रहे जिनके बेरवा हम खुदै बोवा,
बिनु मढ़े ढोलकिया ना बाजै सो बार-बार तुम मढ़े रहौ।
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ।।

तुम पांच रहौ अब अनगिनतिन, च्यातौ अब तत्व बिचारि लेव,
अपनत्व छूटि गा दुनिया ते, अब आपन स्वत्व संभारि लेव,
तुम गदहा, घोड़ा के संकर, खच्चर पर अब ना चढ़े रहौ।
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ।।

तुम का कुपंथ कै अमरबेलि हरियर बेरवा असि झुरै दिहिसि,
मेहनति तुम्हारि सब फुरि होइगै, बिसु भरा घाव कोउ दुखै दिहिसि,
अब सजग होउ ना माटी के माधौ बनिकै तुम परे रहौ।
भारत भुइं तुम्है बोलाय रही, ना रुकौ ठिठुकि अब बढ़े रहौ।।
(1978)

लागै जग ते पियार

लागै जग ते पियार, हमका देसवा हमार।

गंगा, जमुना दौरी आवैं हमरी प्यास बुझावै का,
व्यास, बुद्ध अवतरैं हियां पर हमका राह देखावै का,
हिमगिरि यहिका करै सिंगार, धारे सुंदर मुकुट हजार।
लागै जग ते पियार, हमका देसवा हमार॥

ध्वावै पांव समुंदुर येहिके मोती, मणिक बनावै का,
सुंदर बहैं बयरिया येहिमा, जन-जन का हरसावै का,
बिरछ सब फूलैं डार-डार, चहूँ दिसि मधुबन करैं बहार।
लागै जग ते पियार, हमका देसवा हमार॥

आसमान ते देवता आवैं, हमरे करम सुधारै का,
संत महतमा येहिमा उपजैं, जीवन - दरसु बिचारै का,
हुवै नित मंत्रन कै झनकार, भवानी - भोला करैं बिहार,
लागै जग ते पियार, हमका देसवा हमार॥

वीर, प्रतापी येहिमां उपजैं, दुसमन के संहारै का,
धरम - नीति कै करैं थापना, सुख - समरिद्धि उभारै का,
रहा है देसवा हमार जुगाधिन ते सबका सरदार।
लागै जग ते पियार, हमका देसवा हमार॥
(1978)

उमेश चौहान के अवधी होली - गीत

1. चटख रंगु डारेउ अबकी बार

चटख रंगु डारेउ अबकी बार।
पिछली बार रंगु जो डारेउ, टिका दिना दुइ - चार।।
                
कच्चा रंगु रहै सो धुलिगा, पक्का करौ तयार।
तन - मन सराबोर करि डारौ, पक्कै जगै पियार।।  
                
सबके संगै मूड़ु मुड़ावा, छाड़ि दीन घर - बार।
दर - दर ढूँढ़ा, मिले न साईं, बड़ा अजब संसार।।

साबुत गहैं, ख्वांट सब फ्यांकैं, स्वारथ कै भरमार।
गलाकाट ब्यापार हियां का, गलबहियाँ बेकार।।
                                                              
फल बेस्वाद, फूल निर्गन्धी, घटा प्रेम - व्यवहार।
कटे कदंब, करील सुखाने, मधुबन है बेजार।। 

जो भरमावै, मन का भावै, असल पिटइ बाज़ार।
बड़े जोर ते बजै नगाड़ा, डुगडुगिया लाचार।।

'सुपरमैन', 'हीमैन', रहे 'शोमैन' मोहिनी डार।
ई फरेब ते हमैं बचायो, बसेउ करेजा पार।।
(2015)

2. होरी ख्याला जाय

 

चलौ अब होरी ख्याला जाय। 
                         
फगुनवा अउतै बाढ़ी आस,
घटि गवा कोहरा बढ़ी उजास,
ठंड औ जाड़ा भवा खलास,
प्रेमुमय बासंती आकास,
नेह का नाता ज्वारा जाय।   
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 

धरमु अबु घ्वारै लाग खटास,
जातिगत भेदु बढ़ावै त्रास,
गरीबी ज्यादा करै उदास,
पड़ोसी करै महल मां बास,
भेदु यहु सबै मिटावा जाय।
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 

ख़ून का होय लाग व्यापार,
नीति मां घुसिगा भ्रष्टाचार,
अरबपति सजे राज - दरबार,
अर्थशास्त्री भे सबै उदार,
कहाँ दुख - दर्दु सुनावा जाय।
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 
    
निराशा छ्वाड़ौ, बदलौ चाल,
मलौ सब गालन लाल गुलाल,
नए रंग डारौ, होय कमाल,
मचै गलियन मां नई धमाल,
नवा अबु फागु सुनावा जाय।
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 
(2015)

3. फगुनवा मां मनु बड़ा उदास
यहि कलिजुग के कान्हा अलगै, लाज - शरम ना लागै,
कौनि गली अब जैहौ राधा, मधुबन इनका बास।
फगुनवा मां मनु बड़ा उदास।।

काम के आँधर घूमैं चहुँदिशि, मुरली  नहीं  बजावैं,
रंगी खून ते द्याहैं इनकी, रंग सबै बकवास।
फगुनवा मां मनु बड़ा उदास।।

दारू पी हुड़दंग मचावैं, उलटी - सीधी ब्वालैं,
इनके संग फागु को गावै, कैसे होय हुलास।
फगुनवा मां मनु बड़ा उदास।।

छूट बाँस का म्वार पिचक्का, पिचकारी परदेसी,
रंग रसायन जहरीले हैं, कहँ अब रंग पलास।
फगुनवा मां मनु बड़ा उदास।।

प्रेम - भावना धरी ताख मां, मन मां अति कुटिलाई,
ऊपर - ऊपर गरे लगावैं, भीतर करैं खलास।
फगुनवा मां मनु बड़ा उदास।।
(2013)

4. हिया मां जरै नई अब होरी
टुकड़ा - टुकड़ा बँटे ख्यात सब, बढ़ी खूब मँहगाई,
खादि, बीजु ना जाय खरीदा, कैसे होय जोताई,
माथे करजु चढ़ा है भारी, जारी रिशवतखोरी।
हिया मां जरै नई अब होरी।।

कटिगे बाग, बगीचा लुटिगे, खुदी ख्यात कै माटी,
ताल - तलैयन मां जलकुम्भी, यहु कचरा को काटी,
सूखि गये पानी के सोता, ट्यूबेल भूमि निचोरी।
हिया मां जरै नई अब होरी।।

जाति - जाति मां बँटा गाँव औ पार्टी - पार्टी ट्वाला,
आपन सगा करै सबु जायज, दीगर गड़बड़झाला,
पंच और सरपंच करैं मिलि, चोरी, सीनाजोरी।
हिया मां जरै नई अब होरी।।

जेहिमा अमरबेलि अस लपिटे, वहै बिरौवा चूसैं,
डारि - डारि तारन मां कटिया, बिजुरी का सुखु लूटैं,
जेहिते होय गाँव कै रक्षा, विनवौं सोइ कर जोरी।
हिया मां जरै नई अब होरी।।
(2013)