आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Saturday, March 31, 2012

बिजूका

(चित्र : डॉ. अवधेश मिश्र)


बचपन में सीखी थी एक बात
घर की कमजोरी का भेद बाहर नहीं खोलना कभी भी बाहर
नहीं तो लतियाए जाओगे गली-गली,
यह भय बना ही रहना चाहिए दुश्मनों के मन में
कि घर में मौजूद है ऐसी कोई अदृश्य ताकत
जिसका मुकाबला नहीं कर सकते वे सब एकजुट होकर भी,
यह तरकीब वैसे ही काम आती है हमेशा
जैसे घर में कुत्ता हो या न हो
पर होशियार आदमी अपने गेट पर बोर्ड जरूर लटका देता है –
‘बिवेयर ऑफ डॉग्स’…


अरे! फौज के पास बंदूक, तोप, टैंक व मिजाइलें हों या न हों
बाहर तो यही संदेश जाना चाहिए कि
सब कुछ है उनके पास, और जमकर है,
यहाँ तक कि परमाणु-बमों बड़ा भंडार भी,
यह कैसी बुद्धि है जो सेना के एक सर्वोच्च कमांडर से
गोला-बारूद की कमी होने की चिट्ठियाँ लिखवाती है
और जवानों के बीच असुरक्षा और आत्महंता होने का भाव जगाती है,
घर वाले जब गृहस्वामी से कुछ जरूरत की चीजें माँगते हैं
तो चुपचाप घर के भीतर बात करते हैं,
चिट्ठियाँ थोड़े ही लिखते हैं?
और मुहल्ले भर में हल्ला थोड़े ही मचाते हैं अपने अभावों का?
नहीं तो, फिर तो वही होगा …
‘घर का भेदी लंका ढावे’ …

देश की सुरक्षा के प्रबंधकों को मालूम नहीं है क्या कि
जानवरों को फसल से दूर रखने का सबसे सरल उपाय करता है बेचारा गरीब किसान
अपने खेत के बीचोबीच खड़ा करके एक फटे-पुराने कपड़ों वाला बिजूका …

1 comment:

  1. This (Bijuka) is not the remedy,some one should open the eyes of our rulers... pushing head inside sand dune like ostrich or beating drums like Saddam Hussain... Phir 'Tayn tayn fish'...I remember China war and saw hundreds of our injured soldiers in military hospitals awaiting amputation. I heard their stories from their own words how they suffered without proper arms, ammunitions and protective gears. Lot of improvement came after that war as we saw in Kargil. Our real enemy is corruption- among politicians, army officers, civil servants...

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