आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Monday, September 16, 2013

मुरगी की चोरी (2013)

दिलबर तीन दिन से भूखा सो रहा था
आज उसे अपनी झोपड़ी के पिछवाड़े जब एक मुरगी दिखी
तो वह झट से उसे उठाकर अपनी झोपड़ी में ले आया
और उसे काटकर पकाने-खाने की तैयारी में जुट गया

तभी उस मुरगी के रखवाले
पड़ोसी दिलावर ने शोर मचाया ……

इसने मेरी सौ रुपए की मुरगी ही नहीं डकारी
यह मुरगी जो रोज दस - दस करके सैकड़ों अंडे देती
उन अंडों से आगे चलकर जो और मुरगियाँ जन्मतीं
और उन मुरगियों से भविष्य में और जो हजारों अंडे होते
फिर उनसे जो मुरगियाँ पैदा होतीं और उन मुरगियों से जो अंडे होते
उन तमाम संभावनाओं को इसने ख़त्म कर दिया है
इस दिलबर ने मेरे करोड़ों की चपत लगा दी है ……
यह दीगर बात है कि इस मुरगी ने आज तक एक भी अंडा नहीं दिया
लेकिन संभावित लाभ को नज़रंदाज भी तो नहीं किया जा सकता!

दिलावर के साथी थाने में करोड़ों की चोरी का केस दर्ज़ कराने जा रहे थे
दिलबर डरकर झोपड़ी के बाहर मुरगी लौटाने के लिए लोगों को वापस बुला रहा था

मुझे पता चला कि दिलावर पुलिस के पास
अपनी मुरगी की चोरी के कारण हुए नुकसान के आकलन के समर्थन में
देश की एक शीर्ष एवं नामी निगरानी संस्था द्वारा
संसद के समक्ष पेश की गई
एक ऐसे ही संभावित वित्तीय क्षति के मामले की रिपोर्ट को

पेश करने की तैयारी कर रहा था।

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