आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, March 22, 2015

होरी ख्याला जाय (अवधी)



चलौ अब होरी ख्याला जाय। 
                         
फगुनवा अउतै बाढ़ी आस,
घटि गवा कोहरा बढ़ी उजास,
ठंड औ जाड़ा भवा खलास,
प्रेमुमय बासंती आकास,
नेह का नाता ज्वारा जाय।   
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 

धरमु अबु घ्वारै लाग खटास,
जातिगत भेदु बढ़ावै त्रास,
गरीबी ज्यादा करै उदास,
पड़ोसी करै महल मां बास,
भेदु यहु सबै मिटावा जाय।
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 

ख़ून का होय लाग व्यापार,
नीति मां घुसिगा भ्रष्टाचार,
अरबपति सजे राज - दरबार,
अर्थशास्त्री भे सबै उदार,
कहाँ दुख - दर्दु सुनावा जाय।
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 
    
निराशा छ्वाड़ौ, बदलौ चाल,
मलौ सब गालन लाल गुलाल,
नए रंग डारौ, होय कमाल,
मचै गलियन मां नई धमाल,
नवा अबु फागु सुनावा जाय।
चलौ अब होरी ख्याला जाय।। 

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