कली - कली में प्रेम की नव सुगन्ध का वास।
भँवरों की उत्तेजना उन्हें न आए रास।।
खुशबू मन को भा गई, उमड़ा प्रेम - प्रवाह।
ना भाई तो मसलकर फेंका चलती राह।।
प्रेम तुरंता आजकल चलते - फिरते होय।
'गुड माॅर्निंग' 'क्रश' का 'ब्रेकअप' 'गुड नाइट' संग होय।।
मन की माटी की नमी भीतर जब रिस जाय।
नेहांकुर उपजे, बढ़े, प्रेम - बीज मुसकाय।।
जब बरसे, मन द्रवित हो, ज्योति बिखेरे रंग।
प्रेम - क्षितिज सजने लगे इन्द्रधनुष के संग।।
समय - समय पर बदलता प्रेम - नदी का रूप।
उफनाए बरसात में, सूखे पाकर धूप।।
प्रेम - समुद्र विशालतम लहरें उठें अनंत।
इसे कर सके पार जो वो ही साँचा संत।।
प्रेम - विटप कुचियाय जब, मन आनन्द समाय।
जीवन का आतप मिटे, नित बसन्त मुसकाय।।
प्रेम विशुद्ध विकार है, दिव्य प्रेम का भाव।
जो इससे वंचित रहा, जीवन दिया गंवाय।।
भँवरों की उत्तेजना उन्हें न आए रास।।
खुशबू मन को भा गई, उमड़ा प्रेम - प्रवाह।
ना भाई तो मसलकर फेंका चलती राह।।
प्रेम तुरंता आजकल चलते - फिरते होय।
'गुड माॅर्निंग' 'क्रश' का 'ब्रेकअप' 'गुड नाइट' संग होय।।
मन की माटी की नमी भीतर जब रिस जाय।
नेहांकुर उपजे, बढ़े, प्रेम - बीज मुसकाय।।
जब बरसे, मन द्रवित हो, ज्योति बिखेरे रंग।
प्रेम - क्षितिज सजने लगे इन्द्रधनुष के संग।।
समय - समय पर बदलता प्रेम - नदी का रूप।
उफनाए बरसात में, सूखे पाकर धूप।।
प्रेम - समुद्र विशालतम लहरें उठें अनंत।
इसे कर सके पार जो वो ही साँचा संत।।
प्रेम - विटप कुचियाय जब, मन आनन्द समाय।
जीवन का आतप मिटे, नित बसन्त मुसकाय।।
प्रेम विशुद्ध विकार है, दिव्य प्रेम का भाव।
जो इससे वंचित रहा, जीवन दिया गंवाय।।
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