आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Sunday, August 31, 2014

हे ईश्वर!

हे ईश्वर!
मुझे पूरा विश्वास है
यदि तुम्हीं ने बनाए हैं ये
चींटियों से लेकर बंदरों हाथियों के जैसे
अपने - अपने रंग, रूप, बोली भाषा में एक - से दिखने वाले
दुनिया के सारे जीव - जन्तु
जो सहज ही घुल - मिल जाते हैं परस्पर
अपनी - अपनी प्रजाति में
भौतिक और भावनात्मक धरातल पर
तो तुमने निश्चित ही नहीं बनाए हैं
इस धरती के मनुष्य
जिनका रंग, रूप, बोली, भाषा, आस्था पर आधारित
अपनी ही प्रजाति का बंटवारा
असह्य होता चला जा रहा है
दिनो - दिन हमारे लिए

हे ईश्वर!
यदि तुमने ही बनाए हैं
इस धरती के मनुष्य
तो मैं निश्चित ही यही मानूँगा कि
तुमने ही नहीं बनाए होंगे
धरती के ये सारे अन्य जीव - जन्तु
क्योंकि इतनी सारी विषमताओं से भरी
मानव जाति का सर्जक
भला कैसे कर सकता है
इतनी सारी नैसर्गिक समता का सृजन!

हे ईश्वर!
मुझे ज्यादा संभावना इस बात की ही लगती है कि
तुमने इन दोनों का ही सृजन नहीं किया होगा
(नास्तिक नहीं, सिर्फ़ तर्कशील हूँ, इस स्पष्टीकरण के साथ)
क्योंकि इनमें से किसी एक का सृजन करने के उपरान्त
इतनी विपरीत प्रवृत्तियों वाले
किसी अन्य जीव का सृजन तुम क्यों होने देते भला!

यह तो इस दुनिया के मनुष्यों की फितरत ही लगती है कि
उन्होंने अलग - अलग देश - काल में
अपने लिए अलग - अलग किस्म के ईश्वर रचे
अपने को रंगों, वर्णों और धर्मों में बाँटा
बोलियों और भाषाओं में विभक्त किया
देशों और प्रदेशों की सीमाएँ खींचीं
इंच - इंच भूमि पर कब्ज़े के लिए
एक - दूसरे का ख़ून बहाया
संसाधनों का बंटवारा किया

जिन्होंने अपनी ही प्रजाति में सेवक और ग़ुलाम बनाए,
हे ईश्वर, क्या वे हो सकते हैं तुम्हारे ही जाये?

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