आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Saturday, May 16, 2015

प्रजातंत्र का जनाज़ा (केरल विधानसभा की एक घटना को याद करते हुए)

उखाड़ दिए गए पाए विधायी कुर्सियों के
धोतियाँ उठीं अश्लीलता से
नियमनिर्माताओं की टाँगें उघाड़तीं
सभाध्यक्ष की कुर्सी औंधी कर 
उछाल दी गई लतिया - लतियाकर 
बड़े ही जोश से निकाला गया जनाज़ा प्रजातंत्र का
उसी के झंडाबरदारों द्वारा
'भारत भाग्य विधाता' गाए बिना!

महाभारत के कपट - युद्ध
देखता था बस एक संजय
आज की राजनीति के रहस्य
एक साथ देखते हैं दर्ज़नों संजय
घर - घर प्रसारित होता है
लोकतंत्र का नंगानाच
गर्भस्थ अभिमन्यु तक समझने लगे हैं
लोकतंत्र के चक्रव्यूह की संरचना का रहस्य
बस नासमझ लगता है तो वही,
जिसे सबसे समझदार मानते हुए
हमने ही चुनकर भेजा है

उस सभा की शोभा बढ़ाने!

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