आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Friday, July 8, 2011

अमलतास

अमलतास के फूल खिले हैं
सोने जैसे बिछे पड़े हैं,
सोने की झूमर सी लटकीं
अमलतास की डाली-डाली,
नख-शिख फैली स्वर्णिम आभा
खुशबू फैली गली-मोहल्ले।

सोने का सुख दुनिया लूटे
अमलतास वृक्षों के नीचे,
यही स्वर्ण आभूषण तुमको
देने की क्षमता है मेरी,
नहीं जौहरी की मालाएं।

प्रेयसि! अब तुम मिलना मुझको
अमलतास की ही बगिया में,
उसके फूलों की अंगिया में।

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