आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Tuesday, July 19, 2011

संसार मिथ्या है

सुबह-सुबह टहलते समय
एक मित्र ने मुझसे पूछा,
“कहा जाता है,
यह संसार मिथ्या है,
यह एक ऐसे स्वप्न की तरह है
जो हमें प्रायः सच लगता है
इस बारे में आपका क्या विचार है?”

मैं कुछ उत्तर दे पाता
उसके पहले ही
साथ चल रहा दूसरा मित्र बोला,
“छोड़ो यार!
जाने दो इन फालतू बातों को!
सुबह-सुबह इनके लिए माथा क्यों खराब करना?”

मैं प्रश्न का उत्तर दिए बिना ही आगे बढ़ गया,
लेकिन प्रश्न तो जैसे
बरसात की चुप्पी में समाहित उमस सा
पीछा ही नहीं छोड़ रहा था मेरा।

मैंने अपने विचारों को हवा दी तो
थोडी सी राहत मिली चिपचिपी से,
संभावित उत्तरों के अरण्य में घुस कर
खोजने लगा मेरा मन
उस सदाबहार कल्प-तरु को
जिसकी सघन छाँव में बैठ कर
किया जा सके मेरे द्वारा
अपनी तमाम जिज्ञासाओं का समाधान,
लेकिन सरलता से कहाँ होना था ऐसा?
पूरा दिन ही लगा रहा मैं विचारों की उधेड़-बुन में।

मनुष्य के विचार डोलते ही रहते हैं
घड़ी के पेन्डुलम की तरह
तर्कों के संवेग से उत्प्रेरित होकर
कभी इधर तो कभी उधर,
समय के प्रवाह के साथ ही
बदलती रहती है
तर्कों की पृष्ठभूमि भी
और वैचारिक अन्वेषणों के परिणाम भी,
निरन्तर चलता रहता है यहाँ
सही को गलत ठहराना और गलत को सही,
ऐसा कम ही होता है यहाँ कि
सही को सही ही कहा जाय और गलत को गलत।

अगले दिन मेरा मन किया कि
दौड़ कर फिर पकड़ूँ उन मित्रों को
प्रातः-भ्रमण के समय
और चिल्ला-चिल्ला कर उनसे कहूँ,
“मनुष्य का मन होता ही ऐसा है कि
उसे जो कुछ सामने दिखता है
वह छलावा लगता है
और जो सामने नहीं दिखता
वही आकर्षक एवं हासिल किए जाने योग्य।

इसलिए,
अगर मन की बातों पर भरोसा करोगे
तो यह संसार मिथ्या ही लगेगा -
एक ऐसे स्वप्न की तरह
जो समय के तात्कालिक संदर्भ में
सचमुच घटित होता दिखाई देता है हमारे सामने,
किन्तु समय की अनन्त यात्रा के परिप्रेक्ष्य में
एकदम नश्वर लगता है -
नींद खुलते ही अचानक गायब हो जाने वाला,
लेकिन, अगर इन्द्रियों पर विश्वास करोगे
तो फिर यह सृष्टि ही लगेगी एकमात्र शाश्वत सत्य
और लगेगा कि मनुष्य ही है इसका सर्वश्रेष्ठ नियंता
गृह-गृहान्तरों तक अपनी शक्ति के प्रदर्शन में रमा हुआ।

आज अधिकांश लोगों का मानना है कि
जगत मिथ्या नहीं -
यह एक यथार्थ बन कर उपजा है
जटिल रासायनिक प्रक्रियाओं के माध्यम से,
और यह कैसे प्राप्त कर सकता है चिर-यौवन
इसी खोज-बीन में जुटी है आज अधिकांश दुनिया।”

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