बिन्दु - बिन्दु जोड़ता चला
गया
एक ही दिशा में
बनी एक सरल रेखा,
ऊपर की ओर जोड़ने पर
पहुँची आसमान तक,
नीचे की ओर जोड़ने पर
आ टिकी धरती पर
कभी सतह पर
मुड़कर आगे बढ़ी
कभी सीधे धँस गई पाताल में,
कभी - कभी यह भी हुआ कि
हम बिन्दु से बिन्दु जोड़ते
गए वृत्ताकार
और घिरते
गए उसी परिधि के भीतर,
किया नहीं पराक्रम कभी
रेखा के बिन्दुओं को बिखेर
देने का
या बिन्दुओं को अलग - अलग
ही सहेजकर रखने का,
अफसोस!
जाना ही नहीं आज तक कि
असंपृक्त बने रहकर भी ये
बिन्दु
ले जा सकते थे जीवन को
संरचना की नई दिशाओं की ओर
अदृश्य बने रहने वाले
ऊर्जावान बोसॉन कणों की
भाँति।