अलविदा 2014
हम याद रखेंगे कि
इसी साल मंगल की कक्षा में पहुँचा
स्वनिर्मित किफ़ायती भारतीय अंतरिक्ष यान,
इसी साल तीन दशक बाद मिला
भारतीय लोकतंत्र को जनता का बहुमत,
इसी साल जगीं हैं लोगों में कुछ उम्मीदें, कुछ विश्वास
पिछले कई वर्षों की नाउम्मीदी और नाराज़गी के बाद,
इसी साल बढ़ी है सरकारी दफ़तरों में समय की पाबंदी
और डरे हैं अफ़सर 'मुझे क्या' व 'तू कौन' कहने में,
इसी साल बदले हैं देश के बारे में अमीर देशों के सुर
और बदला है भारत की खाद्य सुरक्षा के बारे में अमेरिका का नज़रिया,
इसी साल मानसून की भारी कमी के बावजूद कम बढ़ी है मंहगाई
और पुष्टि हुई है देश में गरीबी तथा भुखमरी के कम होने की,
हम याद रखेंगे कि
इसी साल मंगल की कक्षा में पहुँचा
स्वनिर्मित किफ़ायती भारतीय अंतरिक्ष यान,
इसी साल तीन दशक बाद मिला
भारतीय लोकतंत्र को जनता का बहुमत,
इसी साल जगीं हैं लोगों में कुछ उम्मीदें, कुछ विश्वास
पिछले कई वर्षों की नाउम्मीदी और नाराज़गी के बाद,
इसी साल बढ़ी है सरकारी दफ़तरों में समय की पाबंदी
और डरे हैं अफ़सर 'मुझे क्या' व 'तू कौन' कहने में,
इसी साल बदले हैं देश के बारे में अमीर देशों के सुर
और बदला है भारत की खाद्य सुरक्षा के बारे में अमेरिका का नज़रिया,
इसी साल मानसून की भारी कमी के बावजूद कम बढ़ी है मंहगाई
और पुष्टि हुई है देश में गरीबी तथा भुखमरी के कम होने की,
लेकिन हम यह भी
नहीं भूलेंगे कि
इसी साल खो दिया है हमने लोकसभा में प्रतिपक्ष और राज्यसभा में लोक - चिन्ता
और फिर से बढ़ी है देश में भाषायी, सामुदायिक व साम्प्रदायिक हठधर्मिता,
इसी साल फिर से मारे और उजाड़े गए हैं असम में आदिवासी
और माओवादी हिंसा ने पसारे हैं सबसे शांत केरल में पांव,
इसी साल रोया है पूरा विश्व पाकिस्तान में हुए बच्चों के क़त्लेआम पर
और व्यापक हुई है हिंसा व बर्बरता, गाज़ा की पट्टी, सीरिया और ईराक में
इसी साल लगातार लागत से नीचे बने रहे हैं मूँगफली और मक्के के बाज़ार - भाव
और देश में फिर से बढ़ी हैं किसानों की आत्महत्याएँ,
इसी साल फिर से बढ़ा है जंगलों और जनजातियों पर ख़तरा
और उत्तराखंड से भी ज्यादा बुरी बाढ़ की त्रासदी को झेला कश्मीर घाटी ने,
इसी साल सबसे ज्यादा खिल्ली उड़ाई गई है कला और साहित्य की
और सबसे ज्यादा हताश और निराश दिख रहे हैं देश के बुद्धिजीवी,
इसी साल खो दिया है हमने लोकसभा में प्रतिपक्ष और राज्यसभा में लोक - चिन्ता
और फिर से बढ़ी है देश में भाषायी, सामुदायिक व साम्प्रदायिक हठधर्मिता,
इसी साल फिर से मारे और उजाड़े गए हैं असम में आदिवासी
और माओवादी हिंसा ने पसारे हैं सबसे शांत केरल में पांव,
इसी साल रोया है पूरा विश्व पाकिस्तान में हुए बच्चों के क़त्लेआम पर
और व्यापक हुई है हिंसा व बर्बरता, गाज़ा की पट्टी, सीरिया और ईराक में
इसी साल लगातार लागत से नीचे बने रहे हैं मूँगफली और मक्के के बाज़ार - भाव
और देश में फिर से बढ़ी हैं किसानों की आत्महत्याएँ,
इसी साल फिर से बढ़ा है जंगलों और जनजातियों पर ख़तरा
और उत्तराखंड से भी ज्यादा बुरी बाढ़ की त्रासदी को झेला कश्मीर घाटी ने,
इसी साल सबसे ज्यादा खिल्ली उड़ाई गई है कला और साहित्य की
और सबसे ज्यादा हताश और निराश दिख रहे हैं देश के बुद्धिजीवी,
स्वागत है
2015 का
इसी उम्मीद के साथ कि
जरूर कुछ ऐसा होगा इसमें
जो हमें फिर से खिलखिलाकर हँसने का मौका देगा
सारी नाउम्मीदी और दुष्चिन्ताओं को जड़ से मिटाते हुए!
इसी उम्मीद के साथ कि
जरूर कुछ ऐसा होगा इसमें
जो हमें फिर से खिलखिलाकर हँसने का मौका देगा
सारी नाउम्मीदी और दुष्चिन्ताओं को जड़ से मिटाते हुए!