आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Saturday, April 20, 2013

विश्वास


विश्वास छीना नहीं जा रहा
कूड़े की तरह बुहारकर फेंका जा रहा है गली में
उसे चिंदी-चिंदी कुचला जा रहा है आते-जाते।

विश्वास बोटी-बोटी तला जा रहा है तंदूर पर
और उसका स्वाद
अब कभी भी नहीं हो सकता
पहले की तरह सामान्य।

विश्वास अब बेचा जा रहा है
'सेल में' फुटपाथों से लेकर बड़ी-बड़ी मालों तक में
एक ही तौर-तरीके से
बेस्टसेलर किताबों की गैर-कानूनी प्रतियों की तरह
एक खरीदने पर दो मुफ़्त।