आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Wednesday, September 16, 2015

प्रथम शत्रु - कुपोषण (अवधी आल्हा)

बिना खाद जस मरियल दाना, बिनु सींचे न खेतु हरियाय।
वैसइ काया है मनुष्य कै, बिनु पोषण तनु जाय नशाय।।

जस कमजोर बीजु बोए ते, कबौ न पावै उपज किसान।
वैसइ स्वस्थ द्याह पावै का गर्भकाल ते बनै विधान।।

नौ महिना तक मातु - गर्भ मां शिशु पावै जब पोषाहार।
अंग - अंग सब विकसैं, पावै, देह - दिमाग उचित आकार।।

ऊसर बीजु बये फल कै गति तुलसी पहिलेइ कहा बुझाय।
यहि ते मंत्र गांठि मां बाँधौ, माँ का पोषण परम उपाय।।

जो कन्या की करैं उपेक्षा, हनैं गर्भ, जन्मत दुरियांय।
बेटवा प्वासैं जिउ भरि – भरिकै, बिटिया बचा - खुचा बसि खांय।।

उनकी बिटियाँ गर्भ धरैं जब, कैसे पूत होयं बलवान।
चाहे जेतना खांय - पियैं उइ, करि न सकैं शिशु का कल्यान।।

स्वस्थ पुत्र कै करौ कामना तौ पहिले रखौ सुता का ध्यान।
स्वस्थ सबल बिटियै आगे चलि बनिहै सफल मातु लेउ मान।।

माँ का दूधु पिए ते शिशु का खूब होय बल - बुद्धि विकास।
जो माता ना दूधु पियावै, वहिके कुच कैंसर का वास।।

मैया दूधु पियैहै कैसे जो न मिली समुचित आहार।
येहिते माता के पोषण का सबते पहिले करौ विचार।।

प्रसवकाल ते एक साल तक जहाँ प्रसूता पोसी जाय।
वहि घर के शिशु परम निरोगी काया - बुद्धि बढ़ै मुसकाय।।

जैसे - जैसे तनु बिकसै शिशु माँगै बहुविध पोषाहार।
बिना संतुलित भोजन पाए नाटेपन का होय शिकार।।

दुर्बल काया रोगु बोलावै, सिकुड़ि दिमाग बुद्धि घटि जाय।
घटै आयु, तनु होय पराश्रित, डांगर पशु सम निष्फल काय।।

बहुतु कुपोषण है भारत मां सुनि माता का दूधु लजाय।
केहरि - सुत मूषक सम घूमैं, पिचके पेट रहे रिरियाय।।

बीस फीसदी देश कै जनता आजु अल्पपोषित है भाय।
सब ते ज्यादा हियैं कुपोषित दुनिया चिन्ता रही जताय।।

युवाशक्ति मां भारत आगे, कहि हम वृथा रहे इतराय।
क्षुधा, कुपोषण, रोग प्रभावित अल्पबुद्धि उइ अति निरुपाय।।

यह त्रासदी मिटी जब, तबहीं, भारत बनी जगत सिरमौर।
ज्ञान - चक्षु अब ख्वालौ भाई, सबका मिलै सुमति का ठौर।।

जे गरीब, वंचित, उनके घर नारी - पोषण कै दरकार।
रुकै भ्रूण - हत्या कन्या कै, बिटिया पावै सम अधिकार।।

यहै स्वप्न होवै जन - जन का, यहै उपाय करै सरकार।
यहै राह चलि मिटी गरीबी, सुखी, समृद्ध होई संसार।।

अंधकार मां दर - दर भटके, सारा दोषु भाग्य का दीन।
नई रोशनी भरौ दृष्टि अब, भाग्य अपन खुद रचौ नवीन।।

प्रथम शत्रु अब बनै कुपोषण, मिटै कुशिक्षा औ कुविचार।
सजग होउ मैया, बहिनी सब, सबल, निरोग होय परिवार।।

चलौ, उठौ अब करौ तयारी, नव संकल्प लेहु मन आज।

पोषण कमी न कोउ शिशु झेली, येहिते पइहै मुक्ति समाज।।

2 comments:

  1. वाह.. बहुत सुन्दर। बचपन में गांव में आल्हा बहुत पढ़ा जाता था। बीच में बिल्कुल नहीं सुना। आपकी आल्हा रचना बहुत सार्थक, संदेशमूलक व रोमांचकारी लगी। लिखते रहिए।

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  2. वाह.. बहुत सुन्दर। बचपन में गांव में आल्हा बहुत पढ़ा जाता था। बीच में बिल्कुल नहीं सुना। आपकी आल्हा रचना बहुत सार्थक, संदेशमूलक व रोमांचकारी लगी। लिखते रहिए।

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