नई सरकार द्वारा काफी विचार - विमर्श के बाद लागू की जा रही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना निश्चित ही किसानों के कल्याण की दिशा में एक बड़ा कदम है, क्योंकि इसमें उन सभी जोखिमों को शामिल करने की कोशिश की गई है, जिनकी वजह से किसानों को अपनी बोयी गई और लहलहाती फसल से हाथ धोना पड़ता है और बिना किसी उचित राजसहायता के कर्ज़ में डूबकर आत्महत्या करने को विवश होना पड़ता है। इस नई योजना के तहत किसानों द्वारा जमा किए जाने वाले बीमा प्रीमियम के बोझ को कम करने के लिए, इनकी दरों को पूर्ववर्ती सरकार द्वारा वर्ष 2013 में लागू किए गए राष्ट्रीय फसल बीमा कार्यक्रम के तहत निर्धारित खुली दरों के पायदानों के बदले, एक न्यूनतम स्तर पर फिक्स कर दिया गया है और सरकारी सहायता के दायरे को बढ़ाकर पहले की योजना के तहत दी जा रही राजसहायता के सीमित प्रतिशत के स्थान पर अवशेष समस्त प्रीमियम के बराबर की राजसहायता देने की व्यवस्था की गई है। इसी के साथ ही पुरानी योजना के तहत लागू प्रीमियम के परिसीमन (कैपिंग) को भी समाप्त कर दिया गया है, क्योंकि उससे प्रिमियम कैप से ज्यादा होने की दशा में जोखिम का कवरेज वास्तविक बीमित राशि की तुलना में कैप के अनुरूप आनुपातिक रूप से घटा दिया जाता है। यह उदार वितीय व्यवस्था मौसम आधारित फसल बीमा के लिए भी की गई है, तथा इस उपयोजना के तहत जहाँ पहले केवल सीमित संख्या में रबी सीजन की अधिसूचित फसलों को ही शामिल किए जाने की व्यवस्था थी, वहाँ अब दलहनी फसलों सहित सभी तरह की खाद्यान्न - फसलों, तिलहनी फसलों व समस्त सालाना वाणिज्यिक व बागबानी फसलों को शामिल कर लिया गया है। यही नहीं, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बीमा कंपनियों को फसल के नुकसान की रिपोर्टिंग सरल बनाने के लिए किसानों के स्तर पर आधुनिक सूचना प्रौद्योगिकी व मोबाइल फोन तकनीक के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भी राज्यों को अलग से वितीय सहायता प्रदान करने की भी व्यवस्था है।
निश्चित ही इस नई योजना से देश के किसानों में बड़ी उम्मीदें जगेंगी। उन उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए सरकार को एक मजबूत क्रियान्वयन - क्षमता सृजित करनी पड़ेगी तथा एक सजग निगरानी तंत्र स्थापित करना होगा। सबसे पहले तो केन्द्र सरकार को अपनी कृषि बीमा कंपनी को मजबूत व कार्यक्षम बनाना पड़ेगा, क्योंकि शुरुआती दौर में उस पर ही प्रीमियम दरों व नुकसान की लागत की गणना की जिम्मेदारी होगी। साथ ही, जिन राज्यों में निजी बीमा कंपनियाँ रुचि नहीं लेंगी और उनमें इस जिम्मेदारी का वहन इसी सरकारी बीमा कंपनी को ही करना होगा। लेकिन यह इस दृष्टि से राज्यों की भूमिका, केन्द्र सरकार की तुलना में और भी ज्यादा महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि योजना के तहत बीमा कंपनियों को दी जाने वाली राजसहायता का 50 प्रतिशत उन्हें भी लगाना होगा, जिसके लिए उन्हें अपने अगले वित्तीय वर्ष के बजट में समय से समुचित प्रावधान करना होगा, प्रदेश में योजना लागू करने के लिए उन्हें तत्काल टेंडर आमंत्रित करके एक बीमा कंपनी का चयन करना होगा, समयबद्ध रूप से राज्य एवं जिला स्तरीय संयोजन समितियों का गठन करना होगा, जिन फसलों की उपज के जिला व उसके नीचे के स्तर के पिछले सात से दस वर्षों के उपज के आँकड़ें उपलब्ध हैं, उन्हें चिन्हित करके इस योजना के तहत कवर किए जाने हेतु अधिसूचित करना होगा तथा इसी के आधार पर आपदा आदि से होने वाले नुकसानों के लिए बीमा क्षेत्रों का निर्धारण करके उन्हें भी अधिसूचित करना होगा तथा निकट भविष्य में ही इन बीमा क्षेत्रों के विस्तार को घटाकर क्रमेण किन्तु शीघ्रातिशीघ्र ग्राम पंचायत स्तर तक लाए जाने की व्यवस्था करनी होगी। यह अच्छी बात है कि राज्य सरकारों द्वारा चयनित बीमा कंपनी की नियुक्ति तीन वर्ष की अवधि के लिए की जाएगी, ताकि वे अनुभव के आधार पर योजना के क्रियान्वयन को क्रमेण सुधार सकें और प्रीमियम दरों को बेहतर ढंग से सुनियोजित कर सकें।
राज्य सरकारों को प्रदेश में योजना लागू करने के लिए नियुक्त बीमा कंपनी को शीघ्रातिशीघ्र चिन्हित बीमा क्षेत्रों से संबन्धित अधिसूचित फसलों की उपज के पिछले वर्षों के आँकड़ों को उपलब्ध कराना होगा ताकि वे जल्द से जल्द प्रीमियम की गणना करके किसानों द्वारा जमा किए जाने वाले प्रीमियम बता सकें और योजना को लागू करने की शुरुआत कर सकें। राज्य के कृषि व उद्यान से संबन्धित विभागों को भविष्य में ग्राम पंचायत स्तर तक विभिन्न बीमित व गैर - बीमित (ताकि वे भी आगे चलकर योजना में शामिल हों सकें) फसलों की उपज के आँकड़े जुटाने के लिए निर्धारित संख्या में फसल कटाई प्रयोगों को आयोजित कराने व उनके परिणामों को संकलित व अधिसूचित करने की सटीक व्यवस्था भी करनी होगी। इसके अतिरिक्त राज्यों की सबसे अहं जिम्मेदारी यह होगी कि इस योजना के तहत कवर की जा रही फसलों, उनके बीमा पर किसानों द्वारा जमा किए जाने वाले प्रीमियम तथा योजना में शामिल होने की प्रक्रिया आदि की समस्त जानकारी किसानों तक सरल रूप में जल्द से जल्द पहुँचाई जाय। केन्द्र सरकार की मंशा भले ही यह हो कि यह योजना अगले खरीफ सीजन में ही देश भर में लागू हो जाय, किन्तु उपरोक्त सभी व्यवस्थाएँ मुकम्मल करने में राज्यों को कुछ वक़्त तो लगेगा ही, इसलिए इसे अगले खरीफ वर्ष में ही सभी राज्यों में लागू कराने के लिए केन्द्रीय स्तर पर क्रियान्वयन प्रक्रिया की राज्यवार सतत मॉनीटरिंग जरूरी होगी।
भारत में फसल बीमा का इतिहास बहुत अच्छा नहीं रहा है। स्वतंत्र भारत में इसके बारे में कोई संरचनात्मक सोच पहली बार तब सामने आई जब वर्ष 1965 में केन्द्र सरकार एक फसल बीमा अध्यादेश तथा एक मॉडल फसल बीमा योजना लेकर सामने आई, किन्तु वह अध्यादेश व योजना लगभग दो दशकों तक विभिन्न समितियों के बीच घूमती रही और किसानों तक न पहुँची। इस बीच कुछ परीक्षणात्मक व पायलट योजनाएँ समय - समय पर लागू होती रहीं, जो यथेष्ट परिणाम न दे पाईं। फिर केन्द्र सरकार ने वर्ष 1999 में राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना लागू की, जिसका लाभ भी किसानों के लिए सीमित ही रहा। वर्ष 2003 में तत्कालीन कृषि मंत्री श्री राजनाथ सिंह ने देश के कतिपय चिन्हित जिलों में गेहूँ व धान की फसलों के लिए एक कृषि आय बीमा योजना लागू करने की पहल की, जो किसानों के लिए काफी फायदेमंद थी, लेकिन 2004 में सरकार बदलते ही वह योजना भी विस्तार न पाकर दम तोड़ गई। पिछली केन्द्र सरकार ने राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के बदले एक परिवर्धित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना को स्वरूपित किया किन्तु उसके वित्त - पोषण के बारे में योजना आयोग व वित्त -मंत्रालय के बीच का झगड़ा लगभग सात - आठ साल तक न सुलझ पाया और आखिर में सरकार ने किसी तरह उसे नाम के वास्ते लागू किया और फिर आम चुनाव के पहले वर्ष 2013 में देश को एक लचर राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना का झुनझुना पकड़ा दिया।
देश का किसान आज बहुत जागरूक व अपने हक़ की लड़ाई लड़ने के लिए सतर्क है। वह यह अच्छी तरह जानता है कि अमेरिका में फसल की पूर्व वर्षों की औसत उपज में न्यूनतम 20 प्रतिशत की कमी आने पर भी किसान को फसल बीमा का लाभ मिलता है, किन्तु भारत सरकार अभी वितीय स्थितियों के चलते केवल न्यूनतम 50 प्रतिशत का नुकसान होने की स्थिति में ही बीमा का लाभ देने पर विचार कर पा रही है। अतएव, इस महत्वपूर्ण नई प्रधानमंत्री कृषि बीमा योजना का पहले जैसा हश्र न हो और यह किसानों की दशकों की उम्मीदों पर खरी उतरे, इसके लिए अब इसे यथानियोजित समयबद्ध रूप से लागू करने के लिए केन्द्र व राज्यों की सरकारों को कमर कसकर ही मैदान में उतरना होगा।
(लेखक वरिष्ठ आई. ए. एस. अधिकारी हैं, किन्तु इस लेख में व्यक्त समस्त विचार उनके निजी हैं।)
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