आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Sunday, August 22, 2010

विविधा

अल्हड़ता

बरसात में उफनाती
सौ-सौ बल खाती
तट-बंधों को लाँघ-लूँघ
स्वेच्छा से यहाँ-वहाँ बह जाती
प्रबल प्रवाह का प्रमाद समेटे
कभी आकर्षित, कभी अपकर्षित करती
लघुजीवी नदी होती है अल्हड़ता।

प्रेमासक्ति

सारी इन्द्रियां जब
महसूस करें एक ही बात,
मन के सारे विचार जब
केन्द्रित होने लगें एक ही बिन्दु पर,
शरीर की सारी क्रियायें
उत्प्रेरित हों जब एक ही आशा में,
और वह भी किसी एक क्षण,
किसी एक दिन नहीं,
शाश्वत हो किसी के प्रति ऐसा लगाव
तभी पूर्णता को प्राप्त होती है प्रेमासक्ति।

इन्द्रधनुष

सतरंगी सपनों का स्वामी
उम्मीदों की किरणों के संग उदित होता
आर्द्रता के उद्बुदों पर तन जाता
निराशा के पंक में डूबने से बचाता
धरती से अम्बर तक जिजीविषा का सेतु सजाता
टूते छप्परों की सांसों और सूखे दरख़्तों के पीछे से भी
कितने सुंदर अहसास जगाने वाला होता है,
इन्द्रधनुष ।

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