आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, December 25, 2011

दो आँसू संग बहाओ तो

यदि ख़ून न खौले, जाने दो,
दो आँसू संग बहाओ तो!

स्वारथ की बेल चढ़ी छप्पर
कौवों की पाँत डटी छत पर
निर्मम सी चील उड़े नभ पर
धरती का खौफ़ भरा मंज़र

लाशों की दुर्गति को छोड़ो,
ज़िन्दा की खैर मनाओ तो!
दो आँसू संग बहाओ तो!!

कितने दिन बीत गए डर-डर
हर पल ही जीते घुट-घुट कर
जिसको भी मान लिया रहबर
उसने ही घोंप दिया खंज़र

किस्मत ने बहुत कुरेदा है
कुछ शीतल लेप लगाओ तो!
दो आँसू संग बहाओ तो!!

मैंने विनती की जीवन भर
मुझको न मिला कोई ईश्वर
मुझको न मिला कोई यीशू
मुझको न मिला है पैगंबर

मैं कब से सूली पर लटका
प्राणों के पंख लगाओ तो!
दो आँसू संग बहाओ तो!!

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर कविता है, वधाई।

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