आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, April 29, 2012

फुटबाल का खेल

मैदान में फुटबाल का खेल चल रहा था
पिछली प्रतियोगिता की विजेता टीम के अजब रंग-ढंग थे
उसके सारे खिलाड़ी हर समय कप्तान से अलग ही दिशा में दौड़ रहे थे
वे खेलते समय केले खाने के शौकीन लगते थे
उन्होंने खेलते समय केलों की सप्लाई बनाए रखने के लिए
मैदान की बाउंडरी के साथ-साथ अपने गुर्गे बैठा रखे थे
वे केले खा-खाकर गेंद के साथ आगे की ओर भागते समय
छिलके कप्तान की तरफ फेंकते जा रहे थे
कप्तान उन छिलकों पर फिसल-फिसलकर भागता हुआ हमेशा पीछे-पीछे ही दौड़ रहा था
ऐसे में गोल करना तो दूर, टीम का पूरे समय मैदान में डटे रहना ही मुश्किल था
कप्तान को टीम के प्रतियोगिता से बाहर हो जाने की चिन्ता सता रही थी
टीम-प्रबन्धन यह तय नहीं कर पा रहा था कि
टीम का प्रदर्शन सुधारने के लिए कप्तान को बदला जाय या खिलाड़ियों को,
दर्शकों के शोर-शराबे व आक्रोश के बीच
मैदान धीरे-धीरे आकार बदलकर भारत के नक़्शे में तब्दील होता जा रहा था और
प्रतियोगिता के परिणाम अब उस टीम से कहीं ज्यादा देश के लिए महत्वपूर्ण होते जा रहे थे।

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