आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Saturday, March 2, 2013

बाज़ार

जब से आँका जाने लगा है
चीजों का मूल्य समाज में
किसी मुद्रा, वस्तु-विनिमय या व्यवहार के रूप में
तभी से चालू हुआ है
व्यापार इस दुनिया में

दोस्तो! बाज़ार का चेहरा
बहुत पुराना है
बस समय-समय पर
बदलता रहता है
उसका मुखौटा और चाल-चलन

दोस्तो! जब आज बाज़ार में
बिकने से बाज नहीं आतीं
कला कविता और भावनाएँ तक तो
कहाँ पर तलाशी जाय वो जगह
जहाँ पर बाज़ार न हो!
(शैलेन्द्र जी की शायरी के बाज़ार से
चंद शब्द चुराने के लिए,
उन पर हक़ जमाने वालों से माफी माँगते हुए)

हर आदमी बेचैन है आज
विचारों तक के बाज़ार में
अपनी कीमत वसूलने के लिए

विचारों के पन्ने खुले हैं आज
खूबसूरती के साथ ऊँची कीमत का टैग लगाए
फेसबुक की दीवारों से लेकर
अमेरिकी देशी दीपक शर्मा की डिनर टेबुल
और अरविन्द केजरीवाल के चुनावी चन्दा जुटाने के रात्रि - भोज तक

कबीर! तुम्हारी लुकाठी कहाँ है?
जो अपना ही घर जलाने को बेताब थी
लोगों की गालियों की बौछार सहते हुए भी!

1 comment:

  1. sundar.........bahut haule se kahi hai aapne ye baat........

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