आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, November 24, 2013

डौंडियाखेड़ा में प्रेम के स्वर्णागार की खोज

डौंडियाखेड़ा के किले के पास
सोने की खोज की चर्चाओं से अनभिज्ञ
तरु-शिखर पर बैठे मोर-मोरनी ने
एक दूसरे को शांति से देखते हुए
प्रणय का मधुर आमंत्रण दिया
  














धीरे-धीरे करीब आ गए पक्षीद्वय
एक-दूसरे की साँसों की गरमाहट को
जाड़े के प्रथम चरण के मंद पवन की
शीतलता से शमित करते हुए और
एक-दूसरे की प्रेमाकांक्षा का पूर्ण सम्मान करते हुए




भले ही किले के खंडहरों के नीचे
खुदाई में न मिला हो बाबा द्वारा सपने में देखा गया
राजा का गड़ा हुआ सोने का भण्डार
लेकिन साक्षी थे हम इस सत्य के कि  
उस खजाने से भी कीमती प्रेम की सम्पदा
खोजी जा चुकी थी आकाश के वक्ष पर
इस प्रणय-रत मयूर-युग्म के द्वारा
















सहसा मोर-मोरनी का रस-भंग कर दिया
स्वर्ण-भंडार देखने के लोभी किसी आगंतुक ने
चौंककर देखने लगे दोनों उसी आहट की दिशा में
पर कहीं नहीं दिखा वह प्रणय-सुख का विघ्नकर्त्ता
तो ढलती सांझ की भाँति ही विचलित हो उठे वे प्रेमीद्वय






त्यागकर परस्पर प्रेमाकर्षण से बद्ध दृष्टि
अपने पीछे की ओर घुमाकर ग्रीवा को
भरसक देखने की कोशिश की उन दोनों ने
पर किसने खंडित किया प्रेम का तप उनका
यह समझ न पाए वे अतृप्त, कुंठित, निराश!      
















कुछ देर बहुत ही असहज हो
उनका मन विचलित रहा किन्तु फिर संयत हो
नैसर्गिक सुख के खोजी वे दोबारा प्रेमाधिष्ट हुए   
पा लिया प्रेम का स्वर्णागार सहजता से
मैं भूल किले की उस खुदाई के शून्य गर्त्त
रह गया देखता मोर-मोरनी को आते फिर से करीब!




1 comment:

  1. Yahi prem hai svarn, yahi naisargik prem jo chaturdik upasthit hai hamare au4 ham jiski avahelna kar svarnmrig ki talash me bavle hote ja rahe hain.

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