आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Monday, May 11, 2015

किसान

गाँव में एक कहावत है
'किसान बना पिसान'
सेकों उसकी रोटी
राजनीति के तवे पर
मिटाओ भूख ताक़त की
रात की पार्टी
तयशुदा कार्यक्रम के अनुसार
आढ़तियों और थोक व्यापारियों के घर पर ही होगी
चुनाव लड़ने का चंदा
चावल की मिल वाला ही देगा
आलू और प्याज की जमाखोरी
सरकार को छकाने के अनन्य हथियार हैं
इन सबकी रस्सियों में
गर्दन फँसाए बैठा किसान
'जन-गण-मन' भले न गाए
वोट तो डालेगा ही
और जिस दिन वह आत्महत्या करेगा
उस दिन जरूर सफल होगी नेता की पद-यात्रा
क्योंकि उसी दिन होगी संसद में
किसानों की दुर्दशा पर सबसे लंबी बहस
और उसी दिन न्यूज़ चैनलों पर सबसे ज्यादा बढ़ेगी
किसानों और खेतों से जुड़ी कवरेज की टी आर पी।


मेरे गाँव में अब यह कहावत नहीं कही जाती
'किसान देश का भगवान है।'

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