आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Monday, July 25, 2011

खुशबुओं का गायब हो जाना

हवा में फैली खुशबू
कभी भी चुकती नहीं
हमारे, तुम्हारे या अन्य कई लोगों द्वारा
उसे जी भर कर सूँघ लेने से।

हवा में समाहित बदबू भी
ख़त्म नहीं हो जाती
तमाम लोगों द्वारा उसे
जी मितलाते हुए पी लिए जाने से।

हवा से गायब हो जाती है खुशबू
जब सूख जाती है कहीं आस-पास
सुगंधित पुष्पों वाली वह लता,
जो होती है,
हवा में फैली इस खुशबू का उद्गम-स्रोत।

हमारे आस-पास की
दुर्गन्ध भी मिटती है तभी,
जब जला कर ख़ाक कर दिया जाता है
पास-पड़ोस का सारा का सारा
सड़ा-गला कूड़ा-कचड़ा, मरे जीव।

जीवन में कहीं कुछ सूख जाना
खुशबुओं का गायब हो जाना होता है
तथा कहीं कुछ सड़ना या मर जाना ही
ज़िन्दगी का बदबुओं से भर जाना।

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