ऐसा लगता है कि
कुछ नहीं बचा है
मुझमें तुम्हारे लिए
और कुछ भी अवशेष नहीं अब
तुम्हारे पास भी मेरे लिए,
फिर भी ऐसा क्या बचा है अभी भी
हम दोनों के बीच
जो बाहर से न दिखते हुए भी
भीतर ही भीतर आज भी
कचोटता है हम दोनों को।
शायद,
गरमी की इस चिलचिलाती धूप में भी
हमारे मन में अभी भी कहीं अटका है
पिछले सावन में बही पुरवाई के
किसी शीतल झोंके का
लरजता हुआ
कोई अविस्मृत सा मृदुल अहसास।
No comments:
Post a Comment