मनुष्य के चेहरे में छिपी
बदले की भावना की क्रूरता
पहचाननी है तो
किसी मिथकीय राक्षस का बिंब गढ़ने की कोई जरूरत नहीं
इसका सबसे उत्कृष्ट मॉडल
सजाया गया है तेल अवीव में ऊँचे सिंहासन पर
मानवाधिकारों के वैश्विक रखवालों द्वारा
गाज़ा की माताओं और बच्चों के ख़ून से अभिषेक करके
इस बात से तनिक भी शर्मिन्दा हुए बिना
कि वह शहर बस थोड़ी ही दूर पर स्थित है
शांति के मसीहा जीसस के जन्म - स्थान से
पहचाननी है तो
किसी मिथकीय राक्षस का बिंब गढ़ने की कोई जरूरत नहीं
इसका सबसे उत्कृष्ट मॉडल
सजाया गया है तेल अवीव में ऊँचे सिंहासन पर
मानवाधिकारों के वैश्विक रखवालों द्वारा
गाज़ा की माताओं और बच्चों के ख़ून से अभिषेक करके
इस बात से तनिक भी शर्मिन्दा हुए बिना
कि वह शहर बस थोड़ी ही दूर पर स्थित है
शांति के मसीहा जीसस के जन्म - स्थान से
मासूमों के ख़ून से सींचकर
किसी भी ज़मीन पर नहीं की जा सकती गुलाब के फूलों की खेती
कहीं नहीं सजाए जा सकते अंगूर की लताओं के उद्यान
ख़ून से नहलायी गई धरती में
उपजती है बस घृणा की ही फसल
उसके भीतर दहकता है बस एक लावा
उसमें आँसुओं के सैलाब को घेर - सुखाकर बनाया जा सकता है
किसी भी ज़मीन पर नहीं की जा सकती गुलाब के फूलों की खेती
कहीं नहीं सजाए जा सकते अंगूर की लताओं के उद्यान
ख़ून से नहलायी गई धरती में
उपजती है बस घृणा की ही फसल
उसके भीतर दहकता है बस एक लावा
उसमें आँसुओं के सैलाब को घेर - सुखाकर बनाया जा सकता है
बस ढेर सारा नमक
और उस नमक को छिड़ककर ताजी की जा सकती है
बस किसी क़ौम के नए - पुराने घावों की टीस
और उस नमक को छिड़ककर ताजी की जा सकती है
बस किसी क़ौम के नए - पुराने घावों की टीस
भला ख़ून के पीने से बुझी है आज तक किसी की भी प्यास!
मुमकिन है कि
शांतिप्रिय कबूतरों के बसेरों में
छिपे हों कुछ आतंकी बाज भी
जिनके हमलों से लहूलुहान हुआ हो
मुमकिन है कि
शांतिप्रिय कबूतरों के बसेरों में
छिपे हों कुछ आतंकी बाज भी
जिनके हमलों से लहूलुहान हुआ हो
क्रूरता
का राज - सिंहासन
भी
किन्तु
बाज़ों से बदला लेने के गुस्से में
कबूतरों के बसेरों को ही तहस - नहस कर देना
कबूतरों के बसेरों को ही तहस - नहस कर देना
अव्वल
दर्ज़े की अमानवीयता है
इसकी सजा तो आने वाले समय का इतिहास ही तय करेगा
आज तो हमारे सामने बस रचा जा रहा है
इसकी सजा तो आने वाले समय का इतिहास ही तय करेगा
आज तो हमारे सामने बस रचा जा रहा है
बदले की
मानसिकता का एक नया इतिहास
क्योंकि विश्व के सारे क्रूर चेहरे
बाज़ों का दोष कबूतरों के सिर पर मढ़ने की साज़िश में एकजुट हो गए हैं
वे हमलावर की निन्दा तक करने को तैयार नहीं
वह ताक़त से भरा और निर्द्वन्द्व है
उसकी क्रूरता की यही पहचान है कि
उसके माथे पर कबूतरों के ख़ून का तिलक लगा है।
यह प्रार्थना का समय है
नाज़ी - इतिहास को भूलकरक्योंकि विश्व के सारे क्रूर चेहरे
बाज़ों का दोष कबूतरों के सिर पर मढ़ने की साज़िश में एकजुट हो गए हैं
वे हमलावर की निन्दा तक करने को तैयार नहीं
वह ताक़त से भरा और निर्द्वन्द्व है
उसकी क्रूरता की यही पहचान है कि
उसके माथे पर कबूतरों के ख़ून का तिलक लगा है।
यह प्रार्थना का समय है
किसी सिनागॉग में बैठकर रोने का समय है
और यदि फिर भी मन न माने तो सारे ख़तरे उठाकर
यह दुनिया के क्रूर चेहरों पर
जोर से खखारकर थूक देने का समय है।
सामयिक और परिपक्व रचना। यह थूक देने का ही समय है।
ReplyDeleteथूकना जरूरी है,एसों पर.
ReplyDeleteबहुत सुंदर सर
ReplyDelete