आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Sunday, July 27, 2014

माँ!

(जुलाई 2014 के अंतिम सप्ताह में गाज़ा पर इज़रायली रॉकेट के हमले में मर जाने वाली गर्भवती माँ के पेट से डॉक्टरों द्वारा बचाकर निकाले गए बच्चे को याद करते हुए)

माँ!
मुझे अपनी गर्भनाल से जुड़ा हुआ छोड़कर
तुम ऐसे नहीं जा सकती!

तुम्हें दु:सह वेदना जरूर होती
मुझ अभागे को जन्मने में
और इस तरह अचानक चले जाने से
तुम बच जाओगी उस पीड़ा से
लेकिन तुम मुझे अपने गर्भ में
इस तरह से अजन्मा छोड़कर
कैसे जा सकती हो माँ!

तुम भले ही अचानक
तेल अवीव की तरफ से आकर
गाज़ा के अपने घर पर फटे
उस रॉकेट के आघात से
अपने को बचाने के लिए
कुछ नहीं कर सकती थीं माँ!

और यह भी
कि शायद तुमने भरसक प्रयत्न किया ही होगा
मरते-मरते भी मुझे बचाने का
जिसके कारण बारूदी धुंए में
घर की छत और दीवारों से लेकर
शरीर के अनेक हिस्से उड़ जाने के बावजूद
बचा रह गया तुम्हारा गर्भाशय सुरक्षित
मुझे डॉक्टरों के हाथों ज़िन्दा ही
गर्भनाल से अलग किए जाने के लिए
लेकिन तुम मुझे इस तरह
जीवन भर मातृहन्ता कहलाए जाने का अभिशाप देकर
कैसे जा सकती हो माँ!

मेरे मन में कुछ सवाल हैं माँ!
वह कौन सा तरीका होगा
जिससे मिटा पाऊँगा मैं अपनी स्मृति से
जीवन भर इस धमाके की गूँज?
जिससे साफ़ कर पाऊँगा मैं
अपने दिमाग से चिपटी बारूद की कालिख?
मैं कैसे माफ़ कर पाऊँगा उन्हें
जो भूल चुके हैं नाज़ी-अत्याचार की सारी संवेदनाएँ
और अब आततायियों की ऐतिहासिक सूची में
दर्ज़ कराना चाहते हैं अपना नाम उनसे भी आगे?
माँ क्या तुम्हारे बिना कोई दे पाएगा मुझे
इन सवालों के ठीक-ठीक जबाब?

गर्भावस्था में तो मैंने
इन सवालों को सामने रखने लायक
कोई शब्द भी नहीं सीखा तुमसे
अभी तो मेरे रोने में ही
ऐसे ढेर सारे प्रश्न प्रतिध्वनित हो रहे हैं माँ!

पता नहीं राजनीति के विकट अखाड़े में
अनगिनत कूटनीतिक चालों में उलझी दुनिया
इन प्रश्नों को सुन भी पा रही या नहीं माँ!

मैंने तुम्हारे गर्भ में पलते समय
इस दुनिया की निर्ममता को महसूसने के साथ-साथ
तुम्हारे मातृत्व और वात्सल्य की हत्या भी होते देखी है
तुम्हारी उस आखिरी चीख को भुलाकर
क्या कभी भी अब इस दुनिया में
मैं मुस्कराते हुए जी पाऊँगा माँ?

काश मैं भी तुम्हारे साथ ही
उस धमाके में उड़ गया होता!
मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा!
आज के इन हालातों में
धन, ताक़त व सत्ता के लालच में जकड़ी
बारूदी कचरे और ख़ून के कीचड़ में लिथड़ी
इस दुनिया को मैं खूबसूरत कैसे मान लूँ माँ!

मैं तो यही चाहूँगा,
कि तुम एक बार फिर से लौटकर आना यहाँ और देखना कि
समय के साथ कुछ भी नहीं बदलता है दुनिया में
और यदि मैंने बड़े होकर जीसस की तरह ही
कुछ कहने की कोशिश की तो
ये मुझे भी लटका देंगे उसी के बगल में एक सलीब पर
लेकिन तुम उस दिन फिर से एक पुनरुत्थान के लिए

मरियम की तरह मेरा सिर अपनी गोद में रखने जरूर आना माँ!

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