आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Tuesday, September 23, 2014

मक्कारी

मक्कारी

भयानक मक्कारी वह नहीं होती
जो नदी के किनारे आँखें बंदकर लेटे
किसी मगरमच्छ के चेहरे में छिपी होती है
क्योंकि उसे तो भांपकर हम
कभी भी कर सकते हैं अपना बचाव

भयानक मक्कारी तो वह होती है
जो नदी के पानी के भीतर घात लगाकर बैठे
मगरमच्छ की आँखों में होती है
क्योंकि उसे देखना या भांप पाना हमारे लिए असंभव होता है

नदी के भीतर छिपे मगरमच्छों की मक्कारी से बचने के
हमारे सामने दो ही विकल्प होते हैं
पहला, कायरों की तरह उस पानी में उतरा ही न जाय
जिसमें वे रहते हों
दूसरा, साहस के साथ हाथ में एक धारदार चाकू थामकर
किसी गोताखोर की तरह धंसा जाय पानी के भीतर
और फाड़ दिया जाय उसकी मक्कारी के प्रेरणास्रोत बने
कभी न भरने वाले पेट को

कभी - कभी वैचारिक मक्कारी वाले मगरमच्छ को
काटने के लिए भी पैने करने पड़ने हैं
खरे - खरे शब्दों के धारदार हथियार।

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