यह पतंगें उड़ाने का ही दौर है
चलो हम भी अपनी पतंगें उड़ाएँ
कभी काटें इसे
कभी काटें उसे
सबसे ऊँचे पहुँचने की शाज़िश रचाएँ
कभी दाएं मुड़ें
कभी बाएं मुड़ें
बीच में फिर घुसा सबसे ऊपर उठाएँ
कभी इससे लिपट
कभी उससे लिपट
मौका पाकर सभी से ही पीछा छुड़ाएँ
कभी आगे से जकड़ें
कभी पीछे से पकड़ें
फिर अमरबेल जैसे सभी को सुखाएँ
बस हवा में रहें
ना ज़मीं पर टिकें
कटके अटकें, लुटें, तो भी सबको छकाएँ।
चलो हम भी अपनी पतंगें उड़ाएँ
कभी काटें इसे
कभी काटें उसे
सबसे ऊँचे पहुँचने की शाज़िश रचाएँ
कभी दाएं मुड़ें
कभी बाएं मुड़ें
बीच में फिर घुसा सबसे ऊपर उठाएँ
कभी इससे लिपट
कभी उससे लिपट
मौका पाकर सभी से ही पीछा छुड़ाएँ
कभी आगे से जकड़ें
कभी पीछे से पकड़ें
फिर अमरबेल जैसे सभी को सुखाएँ
बस हवा में रहें
ना ज़मीं पर टिकें
कटके अटकें, लुटें, तो भी सबको छकाएँ।
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ReplyDeleteसुंदर नवगीत
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