चटख रंगु डारेउ अबकी बार।
पिछली बार रंगु जो डारेउ, टिका दिना
दुइ - चार।।
कच्चा रंगु रहै सो धुलिगा, पक्का करौ
तयार।
तन - मन सराबोर करि डारौ, पक्कै जगै
पियार।।
सबके संगै मूड़ु मुड़ावा, छाड़ि दीन
घर - बार।
दर - दर ढूँढ़ा, मिले न साईं,
बड़ा अजब संसार।।
साबुत गहैं, ख्वांट सब
फ्यांकैं, स्वारथ कै भरमार।
गलाकाट ब्यापार हियां का, गलबहियाँ
बेकार।।
फल बेस्वाद, फूल
निर्गन्धी, घटा प्रेम - व्यवहार।
कटे कदंब, करील सुखाने,
मधुबन है बेजार।।
जो भरमावै, मन का भावै,
असल पिटइ बाज़ार।
बड़े जोर ते बजै नगाड़ा, डुगडुगिया
लाचार।।
'सुपरमैन',
'हीमैन', रहे 'शोमैन'
मोहिनी डार।
ई फरेब ते हमैं बचायो, बसेउ करेजा
पार।।
No comments:
Post a Comment