माना कि
मुक्ति बहुत जरूरी है
लेकिन उससे भी जरूरी है यह समझना कि
कभी - कभी निर्मुक्ति की इच्छा भी होती है
मुक्ति की कामना से ज्यादा प्रबल
लेकिन उससे भी जरूरी है यह समझना कि
कभी - कभी निर्मुक्ति की इच्छा भी होती है
मुक्ति की कामना से ज्यादा प्रबल
क्या मिट्टी
भी कभी चाहती है पाना
धरती के बन्धन से मुक्ति?
धरती के बन्धन से मुक्ति?
माना कि पहाड़
से खिसककर
चट्टान को मिल जाती है मुक्ति
फिर धीरे - धीरे चिटककर अवमुक्त होता है उसका कण - कण
और मिल जाता है मिट्टी में
कभी भी मुक्त न होने के लिए
या बह जाता है दूर नदी की धार में
उपजाऊ खेतों अथवा समुद्री डेल्टाओं तक
लेकिन साथ नहीं छोड़ता कभी भी धरती का
चट्टान को मिल जाती है मुक्ति
फिर धीरे - धीरे चिटककर अवमुक्त होता है उसका कण - कण
और मिल जाता है मिट्टी में
कभी भी मुक्त न होने के लिए
या बह जाता है दूर नदी की धार में
उपजाऊ खेतों अथवा समुद्री डेल्टाओं तक
लेकिन साथ नहीं छोड़ता कभी भी धरती का
मिट्टी के कण
आँधियों में आसमान तक उड़कर भी
चुपचाप उतर आते हैं नीचे
धरती के सीने से चिपक जाने के लिए
आँधियों में आसमान तक उड़कर भी
चुपचाप उतर आते हैं नीचे
धरती के सीने से चिपक जाने के लिए
मिट्टी नहीं
चाहती पाना धरती से
मुक्ति
क्योंकि उसी पर लिखा हुआ है
उसके कण - कण की मुक्ति का इतिहास
क्योंकि उसी पर लिखा हुआ है
उसके कण - कण की मुक्ति का इतिहास
लेकिन धरती के भीतर दबा लावा
हमेशा मचलता रहता है मुक्ति पाने के लिए
और मौका मिलते ही
उसका सीना फाड़कर निकलता है आक्रोश के साथ
क्योंकि वह जहाँ अवस्थित है,
वहाँ जरा - सा भी मुक्तिबोध नहीं होता उसको
तो लब्बोलुबाब
यही है कि
असली मुक्ति वह नहीं होती
कि हाथ - पैर खुले हैं आपके
और आप स्वतंत्र हैं मनचाहे तरीके से
उठने, बैठने, चलने, फिरने, खाने, पीने के
असली मुक्ति वह नहीं होती
कि हाथ - पैर खुले हैं आपके
और आप स्वतंत्र हैं मनचाहे तरीके से
उठने, बैठने, चलने, फिरने, खाने, पीने के
केवल देह -
मुक्ति से कुछ नहीं होता!
असली मुक्ति होती है
सोच की, विचारों की,
संघर्ष की, चेतना की,
बन्धन नकारने की
और बन्धन चुनने की भी!
विचारों की मुक्ति ही असल मुक्ति है ... बहुत गहरी अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteसुन्दर व सार्थक प्रस्तुति
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