आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Saturday, July 25, 2015

कैसे मानूँ (नवगीत)

कैसे मानूँ, हो भगवान?

कितनी हिंसा, ख़ून-खराबा
डरे हुए हैं काशी - काबा,
पहरे में हैं मंदिर - मस्जिद
चर्चों में भी शोर - शराबा,
कैसे करूँ तुम्हारा ध्यान?

कितनी लिप्सा, धरती लुटती
ज़हर हवा में, साँसें घुटतीं,
कितनी नंगी - भूखी देहें
घर के बाहर - भीतर कुटतीं,
लूँ गरीब की लाठी मान?

आतंकित करते हैं आस्तिक
लगा घूरने सबको स्वास्तिक,
काँटे उगे आम की फुनगी
मन हो गया नीम - सा नास्तिक,
ठोक - बजाने की ली ठान।

ढोल सुहाने हैं अतीत के
रस्सी जली ऐंठ में जीते,
भ्रामक विज्ञापन में निष्ठा
सारतत्व सब मन से रीते,
क्यों न करूँ नव पथ-संधान?

No comments:

Post a Comment