छोड़ि सुमिरिनी, छोड़ि प्रार्थना,
पारम्परिक सबै आख्यान।
कहौं आजु कै देशु -
काल गति, रचि नव आल्ह - छंद सुप्रधान॥
इन्द्रप्रस्थ नव, संजोगिनि नव,
नव रण - भूमि, नए सम्राट।
नए सतैया,
नए लड़ैया, नव छल - छंदु, नए पंचाट॥
बढ़ी आय, पर बढ़ी
विषमता, बढ़ी धाँधली, भ्रष्टाचार।
बढ़े शहर औ सिकुड़े जंगल, पिटि कै गाँव भए लाचार॥
ज्यादा उपजै सड़ै ख्यात मां, उपज घटेउ ते मरै किसान।
माटी, बारू, ईंटा,
पाथर, लकड़ी लुटी, लुटे खलिहान॥
जैसे बादर उड़ि - उड़ि आवैं, बिनु बरसे फिरि जांय बिलाय।
जलु भरि गगरी, मुँह कै संकरी, जैसे प्यास न सकै बुझाय॥
वैसै हालति है गरीब कै, अनकथ व्यथा - कथा है भाय।
पैंसठ साला आज़ादी का कौनौ असरु न परै देखाय॥
प्रजातंत्र कै ठेकेदारी जिन - जिन सिर पर लीन उठाय।
उनिकै तौ बसि चाँदी होइगै, बाकी हुँआ - हुँआ चिल्लांय॥
जो सरकारी ओहदा पावैं, उनिके भागि तुरत खुलि जांय।
करि व्यापार मुनाफा काटैं, उनिकेउ पूत फिरैं इतराय॥
कहै - सुनै का बड़ी प्रगति है, ऊँचे भवन रहे चुँधियाय।
किन्तु दिया के तरे अँधेरा, ना हाकिम का परै देखाय॥
संविधान मां सोशलिस्ट सब, सांची कहे होश उड़ि जांय।
तीस रुपैया के अमीर हैं, रोज़ी तीस लाख उइ खांय॥
तीस रुपैयौ केरि अमीरी, तीस कोटि जन सके ना पाय।
साठि साल के लोकतंत्र कै, यह दुर्दशा सही ना जाय॥
जैसे सूरज ऊर्जा बाँटै, सारा भेदु - भाव बिसराय।
जैसे चंद्रमा मनु भरमावै, योग - वियोग न चित्त लगाय॥
जैसे वायु सबका दुलरावै, रंग - रूप का भेदु भुलाय।
जैसे नदी जलु भरि - भरि लावै, सबका तृप्त करै अघवाय॥
कहाँ हवै अस सोशलिज्म औ केहि नेता का ऐसु दरबार।
केहि धनपति कै ऐसि तिजोरी, केहि शासन कै ऐसि दरकार॥
भारत के केहि संविधान मां सबका होइ आस - विश्वास।
सबका मिलिहै छप्पर - छानी, सबका मिटी रोग - संत्रास॥
केहिमां दुःखी मजूर न होई, केहिमां मालिक होई उदार।
केहिमां प्रानु किसान न देई, कहाँ न रोई बेरोजगार॥
भोजन, स्वास्थ्य, सूचना, शिक्षा, चाहै जौनु मिलै अधिकार।
सेवा का अधिकार मिलै या जनजातिन का वनाधिकार॥
बंदरबाँट मची है चहुँ - दिशि, जब तक मिटी न यहु व्यभिचार।
तब तक सब अधिकार व्यर्थ हैं, हैं अनर्थ के ही आधार॥
कब तक जन - गण - मन का सपना, बसि भासन ते होई साकार।
थोथा चना घना बाजै औ घना चना बैठा मन मार॥
चलौ, उठौ, अब नई जंग कै,
चंगी फौज करौ तैयार।
बुद्धि, विवेक,
ज्ञान, साहस कै तानौ चमाचम्म तरवार॥
अब तक हारे, अब ना हारब, चलौ जीत के करौ उपाय।
शेष कहानी समरभूमि कै, फिरि कौनेउ दिन द्याब सुनाय॥
वाह बहुत खूब सर
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