मोरे देस कै अकथ
कहानी, येहिका अजब रीति - व्यवहार।
आल्हा के प्राचीन छंद मां बरनौ किए बिना बिस्तार।।
आल्हा के प्राचीन छंद मां बरनौ किए बिना बिस्तार।।
कहैं 'अहिंसा परमो
धर्मः' चक्कू लेहे फिरैं बाज़ार।
लाठी छोड़ि तमंचा थामिन, सजे दबंगन के दरबार।।
लाठी छोड़ि तमंचा थामिन, सजे दबंगन के दरबार।।
कहैं बिनय बाढ़ै
बिद्या ते किन्तु बढ़ा उल्टा आचार।
जे गरीब अनपढ़ ते विनयी, पढ़े - लिखे कै ऐंठ अपार।।
जे गरीब अनपढ़ ते विनयी, पढ़े - लिखे कै ऐंठ अपार।।
'सत्यमेव जयते'
का ठप्पा निरे झूठ का बनै प्रमाण।
झूठी जाति, आय, शिक्षा औ झूठि बल्दियत क्यार जुगाड़।।
झूठी जाति, आय, शिक्षा औ झूठि बल्दियत क्यार जुगाड़।।
दुई नम्बर कै बड़ी
प्रतिष्ठा, कोठी, एसयूवी सब होय।
सत्य मार्ग पर चलै तौ आपनि लोटिया तुरतै देय डुबोय॥
सत्य मार्ग पर चलै तौ आपनि लोटिया तुरतै देय डुबोय॥
हेय परम श्रम मानैं
लेकिन 'श्रमेव जयते' का परचार।
जूता तक नौकर पहिनावैं, सेवा - भोगिन कै भरमार॥
जूता तक नौकर पहिनावैं, सेवा - भोगिन कै भरमार॥
'परपीड़ा सम नहिं
अधमाई' तुलसी वचन उचारैं रोज़।
दुसरे का कस दुखु पहुँचावैं, यहि कै करैं नित्य ही खोज॥
दुसरे का कस दुखु पहुँचावैं, यहि कै करैं नित्य ही खोज॥
कहैं नारि देवी
सरूप है, मौका मिलतै लूटैं लाज।
करैं नीचता बिटियन के संग, गिरै न उन पर कौनिउ गाज॥
करैं नीचता बिटियन के संग, गिरै न उन पर कौनिउ गाज॥
कहैं स्वच्छता
सुजन निशानी, किन्तु अस्वच्छ करैं परिवेश।
पूजैं धरती, पीपर, बरगद, लूटैं प्रकृति - सम्पदा शेष॥
पूजैं धरती, पीपर, बरगद, लूटैं प्रकृति - सम्पदा शेष॥
कहैं श्रेष्ठ है
आपनि भाखा, मुलु अंगरेज़ी मां बतियांय।
लरिकन का भाखौ ना आवै, 'हाय', 'हलो' सुनि जिया जुड़ाय॥
लरिकन का भाखौ ना आवै, 'हाय', 'हलो' सुनि जिया जुड़ाय॥
परम्परा कै देयँ
दोहाई, मरमु न हिरदय रखैं लगाय।
जाति - पाँति के मकड़जाल मां, सदियन ते समाजु बिल्लाय॥
जाति - पाँति के मकड़जाल मां, सदियन ते समाजु बिल्लाय॥
पहली बारिश मां
खुश होइकै, जैसे ब्वावै खेतु किसान।
किन्तु न फिरि बरसै तौ जानौ छप्पर - छानी सबै बिकान॥
किन्तु न फिरि बरसै तौ जानौ छप्पर - छानी सबै बिकान॥
वहै हालु है देसु
का भैया, उत्तम बीज बुद्धि औ ज्ञान।
पर विवेक - जलु मिलै न तौ फिरि डार - पात बीचै मां सुखान॥
पर विवेक - जलु मिलै न तौ फिरि डार - पात बीचै मां सुखान॥
स्वारथवादी रचि
विधान नव दीन्हिनि ऐसु भरम फैलाय।
रूढ़िवादिता भरी मगज़ मां, मन ते मनुज-प्रेम मिटि जाय॥
रूढ़िवादिता भरी मगज़ मां, मन ते मनुज-प्रेम मिटि जाय॥
कूकुर, बिल्ली,
तोता पालैं, पर गरीब मानुस न सोहाय।
वहिका दूरिअ ते दुतकारैं, प्रीति न तनिकौ चित्त समाय॥
वहिका दूरिअ ते दुतकारैं, प्रीति न तनिकौ चित्त समाय॥
स्वारथ मां मनई
अस आंधर, कांधु न देय कष्ट मां कोय।
शरण देय वहिका घर लूटैं, कूकुर उनते नीकै होय॥
शरण देय वहिका घर लूटैं, कूकुर उनते नीकै होय॥
पालनहार मातु
- पितु ते बड़, येहिमा रहा न कुछु बिस्वास।
कोकिल - अंडज काकपूत सम, धोखा देइ उड़ैं आकाश।।
कोकिल - अंडज काकपूत सम, धोखा देइ उड़ैं आकाश।।
कथनी - करनी मां
बड़ अंतर, कहं तक कहौ देश कै रीति।
प्रीति भुलानी, नीति बिकानी, जन - जन के मन बाढ़ी भीति॥
प्रीति भुलानी, नीति बिकानी, जन - जन के मन बाढ़ी भीति॥
कैसे सुधरी, चाल
जो बिगरी, चिन्ता यहै खाय दिन - रात।
कौनु सिखैहै, कौनु बतैहै, हमका आत्म - शुद्धि कै बात॥
कौनु सिखैहै, कौनु बतैहै, हमका आत्म - शुद्धि कै बात॥
सरबनाश ते पहिले
सँभरौ, का बरखा जब कृषी सुखान।
युवजन, बिटिया, बबुआ जागौ, तुमहीं हौ भविष्य कै शान॥
युवजन, बिटिया, बबुआ जागौ, तुमहीं हौ भविष्य कै शान॥
तुमहीं धारक, तुम
परिचारक, तुमहीं संस्कृति के रखवार।
पुनर्जागरण कै बिजुरी बनि, चमकौ घटाटोप के पार॥
पुनर्जागरण कै बिजुरी बनि, चमकौ घटाटोप के पार॥
वाह, सटीक सामयिक रचना
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