आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, August 31, 2014

लोकपरस्ती

हम खाएँ,
तुम खिलाओ
हम पिएँ,
तुम पिलाओ
हम बोए,
तुम बुवाओ
हम काटें, 
तुम कटाओ

हम पढ़ें,
तुम पढ़ाओ
हम करें
तुम कराओ
हम खर्चें,
तुम कमाओ
हम कमाएँ
तुम झटकाओ

हम डूबें,
तुम डुबाओ
हम जिएँ
तुम जियाओ
हम तरसें,
तुम तरसाओ
हम मरें
तुम मरवाओ

हम डरें,
तुम डराओ
हम तनें,
तुम झुकाओ
हम उठें,
तुम गिराओ
हम बढ़ें, 
तुम टकराओ

प्यारे वाशिंगटन वालो!
तुम जी भर विषधर पालो!
फिर उनके दांत निकालो!
विष का भी भाव लगा लो!

जय हो इस लोकपरस्ती की!
बलिहारी तुम्हारी दोस्ती की!

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