आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Monday, June 2, 2014

रोको उसे (2009) - छोटे भाई ज्ञानेन्द्र की स्मृति में

नौ महीनों तक संभाला हो जिसे
माँ ने गर्भाशय में
सोते समय भी
सजग रहकर करवटें बदलते हुए,
बूँद - बूँद रक़्त से करके पोषण
जना हो जिसे इस धरती पर
सहते हुए इस दुनिया की
सबसे असह्य बताई जाने वाली पीड़ा,
पाला - पोसा हो परिजनों ने जिसे
बाज़ुओं में ताक़त आ जाने तक
अपनी सामर्थ्य भर,
कैसे भुला दिया आज उस युवक ने
इस समूचे त्याग के इतिहास को?
बेवक़्त ही ठान ली उसने
जाने की इस दुनिया से
निर्जीव कर माँ की वात्सल्य - भरी
इस सबसे सरस उत्पत्ति को!
अरे! रोको उसे!

क्यों पीता जा रहा वह
हलाहल दिन - रात?
क्यों उड़ाता जा रहा वह
तम्बाकू, चरस, गाँजे के धुंए की गंध में
जीवन के अनमोल अहसास?
क्यों खाए जा रहा वह
एक के बाद एक
स्नायु - तंत्र को निश्चेत बना देने वाली नशीली दवाएँ?
क्यों दागने जा रहा वह
अपनी आँखे बंद कर
कनपटी पर बारूदी गोलियाँ?
क्यों लपक कर कूदने जा रहा वह
नदी के पुल पर से गुजरती सरपट दौड़ती ट्रेन से?
अरे! कोई तो रोको उस नवयुवक को!

उसे अवसाद से मुक्ति दिलाने के लिए
कुछ तो करो!

कम से कम उसके इस कृत्य से
माँ की आत्मा को होने वाली
पीड़ा का अहसास तो दिलाओ उसे!

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