आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Monday, June 2, 2014

प्रेमासक्ति (2009)

सारी इन्द्रियाँ जब
महसूस करें एक ही बात,

मन के सारे विचार जब
केन्द्रित होने लगें एक ही बिन्दु पर,

शरीर की सारी क्रियाएँ
उत्प्रेरित हों जब एक ही भावावेश में,

किसी एक क्षण या एक दिन नहीं,
शाश्वत हो जब किसी के प्रति ऐसा आकर्षण,
तभी पूर्णता को प्राप्त होती है प्रेमासक्ति।

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