बेटी की याद
आ जा, प्यारी गुड़िया, आ जा, पापा तुझे बुलाते हैं,
आँखों से यादों के आँसू झर - झर झरते जाते हैं।
कहाँ गयी वह सुभग सलोनी छोटी सी गुड़िया मेरी,
कभी हँसाती, कभी रुलाती, बातें करती बहुतेरी।
कभी दौड़ती 'उषा'
बनकर, कभी रूठ भी जाती थी,
कभी क्रुद्ध बदला लेने को चांटा एक जमाती थी।
आफिस से घर पहुँचूँ जब भी दौड़ लिपटती थी मुझसे,
'पापा आए', 'पापा आए',
घर को भरती कलरव से।
बिछुड़ गए दिन सुख के सारे गुड़िया तेरे जाते ही,
अब तो यादें औ' आँसू ही मिलते हैं घर आते ही।
'डैडी' की तुतली बोली का भ्रम होता जब भी घर में,
फूट - फूट जी भर रोता हूँ बियाबान सूने घर में।
वह नकली छोटी गुड़िया तुम जिसे रोज नहलाती थी,
तोड़ - तोड़ कर हाथ - पैर सब अपने संग सुलाती थी।
रखी हुई है यहीं मेज पर प्रतिपल मुझे चिढ़ाती है,
और तुम्हारी छतरी वाली फोटो खूब रुलाती है।
'टा - टा' करके चली गयी तुम मेरी बगिया सूनी कर,
निठुर देश के एकाकीपन की पीड़ा को दूनी कर।
बच्चों का वह पार्क तुम्हारे बिन सूना ही रहता है,
और न कोई अब खिड़की से 'ख्याति-ख्याति' कहता है।
मेरी गुड़िया कब आयेगी, मेरी गोद समायेगी?
अपनी कोमल अँगुलियों से मेरे नैन सुखायेगी?
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