तब के राजाओं का
तहखानों में गड़ा हुआ
धन
पड़े - पड़े ही सड़ा आज
तक,
अब के धूर्तों का भी
सारा
स्विस बैंकों में छिपा
खजाना
किस गरीब के काम आएगा!
बेमानी है सारी चर्चा
इसको वापस ले आने की
बेनामी है वादा इसका,
उतना ही, जितना
फिर पाना
शास्त्रों का प्राकृत
आकर्षण!
हम तो यूँ ही सदा लुटे
हैं
खेत, मेड़, हर
गली - मुहल्ले
मिथ्या भ्रम में मौन
पिटे हैं!
अब आगे की सोचो साथी!
फिर न छिने अपनी बरसाती,
नहीं चलेगी ठकुरसुहाती!
जरा सँभलकर तानो छाती!
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