अभी - अभी किसी आदिवासी गाँव के मेले से लौटा हूँ
महुआ की शराब की ताज़ा गंध अपने नथुनों में समेटे हुए
सम्भ्रांत लोक की सारी खीझ उतारकर
मेरे एक बाजू को लगभग छूता हुआ
अभी-अभी लगने लगा है कि बेकार ही बीता इतना जीवन
किसी सरकस या नौटंकी के बीच चलने वाले मसखरी का आस्वादन - सा करते हुए
हिक़ारत की नज़र से देखे जाने वाले एक खालिश गँवारपन के साथ
कोई पुच्छल तारा उगता है आकाश में
अँधेरे को मिटाने की उम्मीदें जगाता
और फिर किसी झूठी शेखी की तरह ग़ायब हो जाता है जलता हुआ
सुबह लोगों की नींद खुलने के पहले ही
जिसने नाकारा बना दिया है जीवन को पूरी तरह से
अब तो बस दिखावे के लिए ही उमड़ती है सहानुभूति
सड़क के किनारे भीख माँगने को मजबूर
झारखंड अथवा दंडकारण्य से आए किसी घुमंतू परिवार के
सड़क पर छोड़ दिए गए एक लावारिस बच्चे के प्रति
दुश्मनों से घिर जाने पर
अकेले ही भिड़ना है मोर्चे पर
लेकिन उसके पहले अभी तो यह भी शिनाख़्त करनी है कि
वास्तव में ये जो घेरे हुए हैं, वे दुश्मन के ही सिपाही हैं
या फिर वेष बदल कर
साथ के ही कुछ लोग आ गए हैं घेराबंदी करने
जंगल में राजा बने बैठे रंगे सियारों की पहचान कर ली जाय.
महुआ की शराब की ताज़ा गंध अपने नथुनों में समेटे हुए
सम्भ्रांत लोक की सारी खीझ उतारकर
अभी - अभी सनसनाता हुआ निकल गया है
आक्रोश से भरा कोई तीरमेरे एक बाजू को लगभग छूता हुआ
अभी-अभी मेरे बगल से गुज़री है एक जलती हुई गोली
हालातों से विक्षुब्द्ध किसी इनसान की बंदूक से निकलकरअभी-अभी लगने लगा है कि बेकार ही बीता इतना जीवन
किसी सरकस या नौटंकी के बीच चलने वाले मसखरी का आस्वादन - सा करते हुए
अभी-अभी लगने लगा है कि इससे तो बहुत अच्छा रहता
यदि कुछ कर गुजरने की आवारग़ी के साथ गुजारा गया होता जीवनहिक़ारत की नज़र से देखे जाने वाले एक खालिश गँवारपन के साथ
तमाम ओहदों, शानो - शौक़त से किसी को क्या मिलता है भला
जो कुछ मिलता वह बस खुद को ही मिलता है और खुद को ही फलता
है
यह तो बस वैसे ही होता है
जैसे कि बड़ी तगड़ी रोशनी के साथकोई पुच्छल तारा उगता है आकाश में
अँधेरे को मिटाने की उम्मीदें जगाता
और फिर किसी झूठी शेखी की तरह ग़ायब हो जाता है जलता हुआ
सुबह लोगों की नींद खुलने के पहले ही
खैर आज तक जो हुआ सो हुआ,
अब तो बस यही चिंता है कि कैसे उबरा जाय उस त्रासदी से जिसने नाकारा बना दिया है जीवन को पूरी तरह से
अब तो बस चौराहे पर मुनादी करने के लिए ही हैं
त्याग, तपस्या और प्रतिरोध अब तो बस दिखावे के लिए ही उमड़ती है सहानुभूति
सड़क के किनारे भीख माँगने को मजबूर
झारखंड अथवा दंडकारण्य से आए किसी घुमंतू परिवार के
सड़क पर छोड़ दिए गए एक लावारिस बच्चे के प्रति
अब तो विचारधारा, जज़्बातों व सैद्धांतिक चोंचलेबाज़ी की ऐसी - तैसी
अब तो आचार - संहिता, अनचाहे बहरेपन और स्वार्थ से भरी चुप्पी को अलविदा
अब तो बस अपनी टुकड़ी से भटक गए
किसी अकेले सिपाही की तरह दुश्मनों से घिर जाने पर
अकेले ही भिड़ना है मोर्चे पर
लेकिन उसके पहले अभी तो यह भी शिनाख़्त करनी है कि
वास्तव में ये जो घेरे हुए हैं, वे दुश्मन के ही सिपाही हैं
या फिर वेष बदल कर
साथ के ही कुछ लोग आ गए हैं घेराबंदी करने
आज शायद और कुछ भी करने से पहले
यह जरूरी हो गया है कि जंगल में राजा बने बैठे रंगे सियारों की पहचान कर ली जाय.
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