उस दिन
बरतन धोते समय
हाथों से फिसल
वाश - बेसिन के बाहर गिरकर
उस सुन्दर कप का टूट जाना,
वक्ष - स्थल से अचानक उछल कर
फर्श पर हृदय के टकराकर
बिखर जाने जैसा ही था।
अब तक इस भाँति टूटे
दर्जनों कपों व गिलासों से अलग था
मित्र के स्नेह से सने
उस कलात्मक कप के साथ
ऐसा दुर्घटित होना।
बहुत रोना आया था मुझे उस दिन,
कोसा था जी भरकर
नित्य सुबह उस कप में ही
चाय पीने की अपनी चाहत को,
उन परिस्थितियों को भी,
जिनके तहत,
हाथों से फिसल
वाश - बेसिन के बाहर गिरकर
उस सुन्दर कप का टूट जाना,
वक्ष - स्थल से अचानक उछल कर
फर्श पर हृदय के टकराकर
बिखर जाने जैसा ही था।
अब तक इस भाँति टूटे
दर्जनों कपों व गिलासों से अलग था
मित्र के स्नेह से सने
उस कलात्मक कप के साथ
ऐसा दुर्घटित होना।
बहुत रोना आया था मुझे उस दिन,
कोसा था जी भरकर
नित्य सुबह उस कप में ही
चाय पीने की अपनी चाहत को,
उन परिस्थितियों को भी,
जिनके तहत,
चाय पीने
के लिये
मित्र की उस थाती के सिवा
घर में और कोई कप भी उपलब्ध न था
और अनुभव - शून्य मेरे सिवा
घर में कोई और आदमी भी न था
उन बरतनों को धोने के लिये।
फर्श पर बिखरे पड़े
कप के हर एक टुकड़े से उस दिन
झांक रहा था जैसे
मेरे प्रिय मित्र महेश दर्पण का
दाढ़ी में छिपा मंद - स्मित चेहरा,
बरबस ही समेट लिया था मैने
उस कप के एक - एक टुकड़े को,
और फेवीकोल से चिपका - चिपका कर
फिर से जोड़ डाला था उन्हें
ग्रीक एक्रोपोलिस के खंभों की तरह।
अब उस कप में चाय पीना,
न संभव था, न ही स्वीकार्य,
उसे सजा दिया था उसी दिन मैंने,
ड्राइंग - रूम के कप - बोर्ड में।
कुछ के पल्ले बस यही तो बचता है-
अपनी चाहतों के भग्नावशेषों को
स्मृतियों के शो - केस में
सहेज - सहेज कर रखते जाना।
मित्र की उस थाती के सिवा
घर में और कोई कप भी उपलब्ध न था
और अनुभव - शून्य मेरे सिवा
घर में कोई और आदमी भी न था
उन बरतनों को धोने के लिये।
फर्श पर बिखरे पड़े
कप के हर एक टुकड़े से उस दिन
झांक रहा था जैसे
मेरे प्रिय मित्र महेश दर्पण का
दाढ़ी में छिपा मंद - स्मित चेहरा,
बरबस ही समेट लिया था मैने
उस कप के एक - एक टुकड़े को,
और फेवीकोल से चिपका - चिपका कर
फिर से जोड़ डाला था उन्हें
ग्रीक एक्रोपोलिस के खंभों की तरह।
अब उस कप में चाय पीना,
न संभव था, न ही स्वीकार्य,
उसे सजा दिया था उसी दिन मैंने,
ड्राइंग - रूम के कप - बोर्ड में।
कुछ के पल्ले बस यही तो बचता है-
अपनी चाहतों के भग्नावशेषों को
स्मृतियों के शो - केस में
सहेज - सहेज कर रखते जाना।
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