बूटों की आवाज़
उभरती हैं कहीं
मस्तिष्क के नेपथ्य में
भर जाता है भय
दिमाग के कोने - कोने में
विचारों के कुचल दिए जाने का ……
चढ़ती - सी लगती है छाती पर
हृदय की धुक – धुक थम जाने का ख़तरा
आसन्न लगने लगता है ……
ऊँचे भवनों के गलियारों में
गली - कूचों की नाड़ियों की धुप – धुप
धीमी पड़ने लगती है अपने आप ……
ढह चुके राजप्रासादों के खंडहरों में
फड़फड़ाकर उड़ जाते हैं कबूतर
बछ - खुचा आसरा भी लुट जाने की आशंका में ……
शिकारी आखेट पर आमादा हैं
सिंह - शावक भूखे - प्यासे ही
बचाव के लिए अड़े हैं नंगे पाँव
किन्तु उनकी धीमी पद - चाप
दबकर रह जाती है
बूटों की भारी - भरकम आवाज़ के सामने ……
विकल्पहीनता की ओर ले जा रही है
इसीलिए यह प्रतिध्वनित होने लगी है अब
वन - प्रांतरों से लेकर गली - कूंचों तक से ……
हर तरफ गूँजने वाली है अब
नर - कंकालों के पाँवों के
कठोर भूमि पर टकराने से।
उभरती हैं कहीं
मस्तिष्क के नेपथ्य में
भर जाता है भय
दिमाग के कोने - कोने में
विचारों के कुचल दिए जाने का ……
बूटों की आवाज़
थप – थप – थप …चढ़ती - सी लगती है छाती पर
हृदय की धुक – धुक थम जाने का ख़तरा
आसन्न लगने लगता है ……
बूटों की आवाज़
गूँजती है रह - रहकरऊँचे भवनों के गलियारों में
गली - कूचों की नाड़ियों की धुप – धुप
धीमी पड़ने लगती है अपने आप ……
बूटों की आवाज़
जाग उठती है फिर सेढह चुके राजप्रासादों के खंडहरों में
फड़फड़ाकर उड़ जाते हैं कबूतर
बछ - खुचा आसरा भी लुट जाने की आशंका में ……
बूटों की आवाज़
भरने लगी है जंगलों की नीरवता में भीशिकारी आखेट पर आमादा हैं
सिंह - शावक भूखे - प्यासे ही
बचाव के लिए अड़े हैं नंगे पाँव
किन्तु उनकी धीमी पद - चाप
दबकर रह जाती है
बूटों की भारी - भरकम आवाज़ के सामने ……
बूटों की आवाज़
धीरे - धीरे विकल्पहीनता की ओर ले जा रही है
इसीलिए यह प्रतिध्वनित होने लगी है अब
वन - प्रांतरों से लेकर गली - कूंचों तक से ……
ठक – ठक – ठक ……
शायद बूटों से भी भयानक कोई आवाज़हर तरफ गूँजने वाली है अब
नर - कंकालों के पाँवों के
कठोर भूमि पर टकराने से।
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