दो नयनों की उमड़ - घुमड़ ने कह दी सारी बात।
कैसे इनमें प्यार समाया, कैसे आकर्षण भर आया!
कैसे कोमल पंखुड़ियों पर रंगों ने श्रृंगार रचाया!
उर में कैसे सौरभ उपजा, कैसे महकी डाली - डाली!
फिर कैसे यह सब कुछ खोकर बैठी गुमसुम खाली - खाली!
कैसे तड़प - तड़पकर जीता
जीवन अब दिन - रात!
दो नयनों की उमड़ - घुमड़ ने कह दी सारी बात।।
कैसे पलकों ने पट खोले, कैसे इनमें ज्योति समाई!
कितने - कितने सुन्दर
रूपों में किसकी छवि इनमें छाई!
कैसे राग हृदय में उपजा फिर कैसे उन्माद समाया!
फिर किस - किस अनहोनी
ने आ मुझको पीड़ागार बनाया!
कैसे डूब गया है दु:ख में मेरा मधुर प्रभात!
दो नयनों की उमड़ - घुमड़ ने कह दी सारी बात।।
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