वे आए
चुनाव के समय
फिर से वोट बटोरने
वादों का आकाश सजाते
आश्वासनों के पाँवड़े बिछाते
घावों पर मरहम लगाते
गिले - शिकवों को
भूल जाने की गुहार लगाते
जाति - बिरादरी की
कस्में खिलाते।
चुनाव के बाद वे फिर आए
वोट देने वालों को तमीज़ सिखाते
पसीने की बदबू पर मुँह बनाते
मिलने वालों को बंदूक की बटों से धकियाते
कमांडो सिपाहियों से घिरे
वे यूँ ही बार - बार आते रहे
पिछले चुनाव का हर्जा - खर्चा वसूलते
अगले चुनाव की फंडिंग का
मजबूत आधार तैयार करते।
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