हमारे जन - नेता प्राय: कहते हैं -
"हमें भारत को इक्कीसवीं
सदी में ले जाना है,
उसे खुशहाल बनाना है।"
यह सुनते - सुनते
मुझे भी जिज्ञासा हुई यह जानने की
कि आखिर इस इक्कीसवीं सदी का रहस्य है क्या?
मैंने सोचा,
किसी ज्योतिषी से ही क्यों न मालूम किया जाए
सो मैं पहुँच गया अगली सुबह
एक ज्योतिषाचार्य स्वामी के पास,
वे भारत की जन्म - कुंडली निकालकर बोले -
"इक्कीसवीं सदी में कलियुग की माया और प्रचंड होगी
भारत के ऊपर शनि का प्रकोप जारी रहेगा
पश्चिम के आकाश से राहु भी इस पर टेढ़ी दृष्टि रखेगा
राजनेताओं का अकाल मरण होगा
धन - धान्य की कमी होगी
प्राकृतिक विपदाओं से जन - धन की हानि होगी
सत्ता में जल्दी - जल्दी परिवर्तन होंगे
किन्तु स्वतंत्रता का शताब्दी - समारोह मनाने तक
भारत की एकता संभवत: अक्षुण्ण बनी रहेगी।"
मुझे लगा, यदि ऐसा है तो
भारत इक्कीसवीं सदी में जाना ही क्यों चाहता है!
या भारत शायद जाना ही न चाहता हो
यह तो कुछ जन - नेता ही हैं
जो उसे आगे दौड़ाना चाहते हैं,
यहाँ तो वे भी हैं,
जो देश की वृद्धि - दर धीमी ही नहीं
माइनस में रखना चाहते हैं।
मुझे लगा कि इस विषय में अभी
और अधिक मालूमात की आवश्यकता है
सो मैं सीधा एक राष्ट्रीय पार्टी के अध्यक्ष के पास जा पहुँचा
और परिचय देने के बाद उनसे सीधे पूछ बैठा -
"साहब! इक्कीसवीं सदी
के भारत के बारे में आपकी क्या राय है?"
वे बोले -
"इक्कीसवीं
सदी में भारत
बीसवीं सदी के अनुभवों से लाभ उठाएगा
देश की प्रगति - विरोधी ताक़तें पीछे छूट जाएँगी
नई - नई आर्थिक नीतियों के सहारे
हमें ज्यादा से ज्यादा विदेशी ॠण मिलेंगे
इन ॠणों का 'उपभोग' करके देश सम्पन्न बनेगा,
हम भी विकसित देशों के साथ
उठने - बैठने लायक बनेंगे
हमारी भी एक साख होगी
तब हमें 'भारत बचाओ' व 'गरीबी हटाओ' जैसे नारे नहीं लगाने पड़ेंगे
देश में राजनीतिक ध्रुवीकरण के साथ - साथ
सामाजिक व आर्थिक ध्रुवीकरण भी होगा
इस प्रकार इक्कीसवीं सदी का भारत
पूर्णरूपेण एक नया भारत होगा।
नेताजी की विशिष्ट
विरोधाभासी प्रतिक्रिया को सुनकर
मैं चकरा गया,
मामला कुछ साफ न हुआ
तो याद आया कि आजकल तो
सारे विश्लेषण कंप्यूटर ही करता है,
फिर क्यों न इक्कीसवीं सदी के बारे में
किसी कंप्यूटर वैज्ञानिक से ही जान लिया जाय
बस मैं झट से ऐसे ही एक विशेषज्ञ के पास जा पहुँचा।
कंप्यूटर - वेत्ता बोला -
"शांत होकर बैठ
जाओ और ध्यान से सुनो!
मैं रोज़ देश के कोने - कोने से
राजनीतिज्ञों, प्रशासकों, वैज्ञानिकों, अर्थशास्त्रियों,
सबसे सूचनाएँ एकत्रित करता हूँ
और फिर उनका विश्लेषण करता हूँ,
इस हिसाब से पता चला है कि
पिछले लगभग चार दशकों का हर पैरामीटर
इक्कीसवीं सदी में दोगुनी तीव्रता के साथ सक्रिय होगा,
रुपयों का अवमूल्यन रिकार्ड तोड़ देगा
विदेशी ऋण इतना होगा कि
प्रति व्यक्ति अदायगी
प्रति व्यक्ति आजीवन आय से भी अधिक होगी,
दूसरे शब्दों में,
हर भारतीय,
आजीवन किसी विदेशी का बँधुआ होगा
फिर भी हमारी शान - शौकत ऊँची रहेगी
और हम अपने आय - स्रोतों का
अंतिम सीमा तक चूषण करने में सक्षम होंगे।
देश की जलवायु बदलेगी
हो सकता है राजस्थान के रेगिस्तान में खेती हो,
पंजाब के दोआब में रेगिस्तान भी जन्मे शायद
गंगा अभी तो मैली है,
तब शायद
सूख ही
जाए,
बच्चे पढ़ेंगे किताबों में प्रयाग के संगम के बारे में
और जानेंगे कि
एक नहीं, तीन अदृश्य नदियाँ मिलती हैं वहाँ
हम अपनी संस्कृति से ऊपर उठेंगे
तथा विश्व - संस्कृति में जा मिलेंगे।
हमें योजनाओं व योजना आयोग की आवश्यकता नहीं होगी
हम बिना आयोजना के ही विकास - प्रक्रिया चालू रखेंगे
घोटाले बढ़ेंगे तो विशेषायोग जरूर बनेंगे
विशेषायोग कैसे जल्दी रिपोर्ट दें
इस पर भी कोई आयोग जरूर बनेगा
इस प्रकार इक्कीसवीं सदी का भारत
आत्मनिर्भरता से ऊपर उठकर
परमात्मा पर निर्भर हो जाएगा
और उस दशा में परमात्मा ही उसका भला करेगा।"
यह सब सुनकर मुझे ज्ञान मिला
मैंने सोचा यह भी क्या देश है!
यह भी क्या चाह है!
इक्कीसवीं सदी तक जाने की
कितनी सरल राह है!
सब कुछ चलने दो ऐसे ही
दंगे - फसाद, फिरकापरस्ती, नकल, आंदोलन, मँहगाई, चोरी,
फिर ज्यादा प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ेगी,
पहले ही आ जाएगा सन दो हज़ार एक
और भारत इक्कीसवीं सदी में होगा,
यह अलग बात है कि
वह भारत ही होगा या कुछ और, कौन जाने!
अब तक कमोवेश मुझे इतना पता तो चल ही गया था
कि इक्कीसवीं सदी के उस भारत में जीने से
बेहतर होगा मेरे लिए
इक्कीसवीं सदी ईसा पूर्व के हड़प्पा नगर का
अतीत पुरुष बनकर जीना
और गर्व करना अपने भारतीय होने पर।
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