आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Saturday, May 3, 2014

क्रांति (2003)

गाँव के किनारे बसे उस घर में
काफी शांति थी
वर्षों से शांति थी
लोग अपनी - अपनी तरह से
गुजार रहे थे अपना जीवन।

अचानक एक दिन गाँव में
कुछ लोग घुस आए
उन्हें अपनी तरह से जीना सिखाने के लिए
क्रांति - दूत माने जाते थे वे।

उन्‍होंने भ्रांति फैलाने के लिए
गाँव के किनारे बसे उस सबसे शांत घर को
अपनी क्रांति की शतरंज का मोहरा बनाया
घर में घुसकर तड़ातड़ गोलियाँ बरसाई
बाप चारपाई पर लेटने जा रहा था
पीठ पर लगी गोली ने उसे बिस्तर पर ही चिरनिद्रा दे दी
बगल में ही बैठकर पढ़ाई कर रहे मासूम बेटे को
माथे पर लगी गोली ने किताब पर ही सुला दिया
खुली किताब के हर अक्षर पर
ख़ून फैल चुका था
शनै: - शनै: लाल ख़ून जमकर
काला पड़ता जा रहा था।

माँ सबका भोजन निबटाकर ही खाने की मेज पर बैठी थी
उसकी छाती पर गोली लगी तो दूध नहीं बहा
रक्त का फव्वारा फूटकर थाली को रंगता चला गया
दाल - भात - सब्ज़ी सभी को लाल - लाल करता
पशुओं के बाड़े में लगी आग में झुलसकर मरे पड़े
गोरी चमड़ी के नौकर व बकरी की देह के
रंगों का अंतर मिट चुका था।

लाल रंग के बहाने कालिख बिखेरती क्रांति
गाँव में अपने कदम रख चुकी थी
शांति से अपनी ज़िन्दगी जीने वाला वह भयभीत गाँव
अब क्रांति - दूतों के इशारों पर ज़िन्दगी जीने के लिए मजबूर था
अब गाँव का हर बाप सोते समय
यही प्रार्थना करता था कि
अगले दिन भी वह
अपने परिवार को उसी तरह भरा - पूरा देखे
हर बच्चा किताबें पढ़ते समय
काले - काले अक्षरों के बीच से रिसकर उभरते
ख़ून को देखकर सिहर उठता था
जमे हुए ख़ून - सा काला ही नज़र आता था अब उसे अपना भविष्य
सहमी - सहमी रहती थीं गाँव की माताएँ अब हर वक़्त
न जाने कब उनका खिलाया कौर
परिजनों का आखिरी निवाला बन जाए
वे सब इस क्रांति के आगे मजबूर थे।

सब जानते थे कि
यह वह क्रांति नहीं थी
जो अन्‍याय और अत्याचार के विरूद्ध
जनाक्रोश उबलने पर लड़ी जाती रही है सदियों से
शांति - दूतों के नेतृत्व में।

यह तो उन भ्रांतियों से उपजी क्रांति थी
जो प्राय: मिटाती और उजाड़ती रहती है
हँसती - खेलती मानव - समूहों की ज़िन्दगी
मजबूर करती रहती है उन्हें
बंदूकों और हथियारों के सहारे
मानवता का मज़ाक उड़ाने के लिए
और फिर खुद भी बारूद के ढेर में उड़ जाने के लिए।

वे सब कुछ जानते हुए भी लाचार थे।

मासूम माताओं व बच्चों की आँखों में
सूनापन व कसैलापन भरती
चोरी, डकैती, लूटपाट व फिरौती के बाज़ार को
पूरी तरह से स्थापित करती
तथाकथित क्रांति का केन्द्र - बिन्दु बन चुका था गाँव

कहीं उनकी लाचारी का नाम महात्मा गाँधी तो नहीं था?

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