आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Saturday, May 3, 2014

सुधियों के बीज (1983)

चौखट पर खड़े होकर
जब भी मैं
नीम की टहनियों के बीच से झाँकते
चाँद को मुस्‍कराते देखता हूँ
तो तुम्‍हारी स्‍मृतियों की चाँदनी
स्वत: नहला देती है
मेरे मन का आँगन।

हवा के झोंकों के साथ
नीम पर चढ़ी हुई
घुँघची की सूखी फलियों में
सुनाई देती है
तुम्‍हारी पायलों की रुनझुन

मैं तड़प उठता हूँ
जोर से छू दी गई
गुलमेहँदी की पकी फली - सा
और बिखर जाते हैं
तुम्‍हारी सुधियों के बीज
प्रतीक्षा की क्‍यारी में। 

No comments:

Post a Comment