आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

Saturday, May 3, 2014

नगवा नाला (2001)

हमारे गाँव का नगवा नाला
जिसमें हम सब गर्मियों में नहाते थे जी भर
कुंडों में डुबकियाँ लगाते
समतल जल - सतह पर तैरना सीखते
उठानों पर मछलियाँ पकड़ते
आज पूरी तरह सूख जाता है बरसात के बाद।

गाँव में कोई नहीं जानता कि
कहाँ से उद्गम है इसका
निश्चित ही किसी ग्लेशियर से नहीं निकला है यह
किन्तु सब जानते हैं कि
जब तक इसके किनारे स्थित सोतों से फूटकर
निरन्तर निकलता रहता था जल
अजस्र बनी रहती थी इसकी धारा
और कभी ऐसा लगता ही नहीं था कि
हम किसी भी मौसम में - जा सकेंगे इसके पार
बिना इस पर कोई कच्चा या पक्का पुल बनाए
लेकिन आज नल - कूपों से सुड़ककर
इसके चारों तरफ का भूमि - जल
ऐसा निचोड़ा है हमने कि
अब नहीं फूटते इसके किनारे कहीं भी
आँसुओं की टपकन जैसे
मंद रिसाव वाले जल - स्रोत तक।

बरसात में आज भी उफनाता है यह
उन्हीं ऊँचाइयों विस्तार के साथ
खेतों, मेड़ों गाँव के गलियारों को डुबोता हुआ
हमारे घरों तक सेंध लगाता
और तब नाव से ही जाना पड़ता है हमें
इसके इस पार से उस पार तक
बस उसी समय ही देता है यह
इस बात का प्रमाण कि
यह सई, गोमती और उसके बाद गंगा का पोषक है
किन्तु बरसात के जाते ही
सिकुड़कर गायब हो जाता है यह
केंचुओं की तरह मिट्टी में
और किसी महल के परकोटे के बाहर खुदी
सुरक्षा - खाईं - सा ही नज़र आता है हमें
एकदम ही सूखा,
वनस्पतियों से विहीन।

कभी जाड़ों में इसका पानी पीकर ही लहलहाते थे
गाँव के आस - पास के गेहूँ और सरसों के खेत
आज यह स्वयं ही तरसता रहता है पानी को जाड़े में
अब इसके किनारे के जल के सोते
अथवा स्वयं इसकी वक्ष - नाल ही नहीं
इलाके के वे नलकूप भी सूखने लगे हैं
जिनके पंपों ने खींच - खींचकर सारा भू - जल
किया है इसका यह हाल
पता नहीं अब गाँव किन जल - स्रोतों से निकाला करेगा
अपने खेतों और वाशिन्दों की दाह मिटाने के लिए पानी!

कुछ लोग गंगा में बढ़ती सिल्ट से चिन्तित हैं
कुछ उसमें बढ़ते प्रदूषण से
किंन्तु हमारे नगवा नाले की चिंता
उन भैंसों को भले ही हो जो अब उसके जल में लेटकर
जुगाली नहीं कर सकतीं दिन - दिन भर
गाँव के लोगों को बिलकुल भी नहीं
जो अभी भी मिल - जुलकर बचा सकते हैं
इसके सूखते जा रहे अस्तित्व को।

हमारे गाँव का नगवा नाला ही नहीं विलुप्त हो रहा
इसके साथ ही विलुप्त होती जा रही है
नगवा की एक पूरी की पूरी सभ्यता
जिसकी केवल कहानियाँ ही सुना पाएँगे हम
आने वाली पीढ़ियों को।

क्या विलुप्त हो रही वनस्पतियाँ,
मछलियाँ, चिड़ियाँ व जीव - जन्तु भी
सुना सकेंगे अब कभी किसी को अपनी - अपनी कहानियाँ
क्या एक दिन हम भी नहीं बचेंगे इन्हीं की तरह

सुनाने को आगामी पीढ़ियों को नगवा की सभ्यता की कहानी?

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