खोया नहीं है आत्मविश्वास
चुका नहीं है साहस
भी
लड़ने का माद्दा
भी कम नहीं हुआ है
कम नहीं हुआ है
कहीं से भी
चारों तरफ फैला
अन्याय, शोषण व भ्रष्टाचार
बढ़ती ही जा रहीं
जीने की दुश्वारियाँ भी
फिर भी अब अक्सर
चुप ही रह जाता है वह।
समुद्र जैसा पूर्ववत
उमड़ता नहीं वह
बादलों जैसा कड़ककर
गरजता भी नहीं
चुभने लगी है अब
सभी को उसकी निस्संगता
डराने लगी है उसकी
उदासीनता
बेहद हताश करने
वाला है
टूटना इस विश्वास
का कि
कोई तो है जो उठ
खड़ा होगा वक़्त आने पर
कुचलने को हमारी
राह के काँटे
क्यों नहीं खौलता
अब वह प्रतिरोध की आँच पर।
शायद उसका निरन्तर
मेरे लिए जूझते रहना
किन्तु मेरा सतत
निरीह बना रहना ही
शिथिल बना गया
है उसे
एकदम उचाट और तटस्थ
मेरी समझ में नहीं
आया कि
कैसे फिर से तराशकर
उसे बनाऊँ मैं
पहले की तरह चेतन
और धारदार
ताकि मेरे भीतर
का वह सुप्त प्रहरी
फिर से बन सके
मेरे संघर्षों का वज्रायुध!
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