आल्हा - पाठ : केदारनाथ सिंह व नामवर जी की उपस्तिथि में

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Sunday, May 4, 2014

अजूबा रंगमंच (2008)

बड़ा अजूबा रंगमंच है
बदला - बदला सबका वेश।

कोई धार मुखौटा चोखा
देता हर दर्शक को चोखा
कोई लंबे बाल सँवारे
कोई है मुंडबाए केश।

कोई बोले रटी - रटाई
कोई कहे ज़िगर की खाई
कोई दुमुही जैसा डोले
कोई बोले केवल श्लेष।

कोई डुबो - डुबोकर खाए
कोई झूठी आस बँधाए
कोई भर घड़ियाली आँसू
हमदर्दी से आए पेश।

कोई दौलत से इतराए
कोई सत्ता पा बौराए
कोई सब्ज़बाग दिखलाता

बेंचे लेता सारा देश।

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