याद है तुम्हें ?
उस दिन.....
जब घने चीड़ों की छाया में
नोकदार पत्तों के बिछौने पर
तुम्हारे सौन्दर्य का नुकीलापन
मेरे हृदय को छेद गया था
और तुम्हारी आँखों में मचलता युवास्वप्न
मेरे संपूर्ण संचित संयम को भेद गया था।
और उस दिन...
मैंने बड़े श्रम और यत्न से
किसी अपरिचित वृक्ष के सुर्ख़ फूल
तुम्हारे जूड़े में लाकर लगाए थे
और तुम्हारे बालों की घनी छांव में
कुछ पल जैसे स्वर्ग में बिताए थे।
और फिर उस दिन...
तुम्हें अपने हृदय में एकाकार पाकर
नरम - नरम बर्फ पर
साथ - साथ फिसले थे,
घूमे थे,
और उस सफेद घाटी के निर्जन में
तुम्हारे श्वेत - अरुण गाल व पीयूष - सिक्त अधर चूमे थे।
और उस एक दिन...
घनी द्रुमावली के तट पर
प्रवाहमान निर्झर के बीच
किसी स्निग्ध पत्थर पर बैठ
तुम्हारी आँखों में आँखे डाली थीं
और अपने आस - पास बहते
अमल व शाश्वत सत्य को देखकर
मैंने अपने लक्ष्य की एक सुखद
अनुभूति पा ली थी,
याद है तुम्हें ?
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