बहुत पहले सुना था
सूखी नदी में नावें नहीं चला करती
फिर नदी की सूखी रेती में अपने पैर धँसा कर
चप्पुओं को हवा में लहराते हुए
क्यों करते हो रोज अनशन
चलवाने के लिए इस देश की नौका?
पहले उमड़ने दो
लोगों की आँखों में
आँसुओं का सैलाब
ताकि भर जाय करुणा - नीर से यह नदी
फिर उतारो इसमें अपनी नाव
बहाव के सापेक्ष
दिशा व गति को नियंत्रित करते हुए
तभी पहुँच सकेगी लक्ष्य तक
अपेक्षित परिवर्तन की ओर ले जाने वाली नौका।
किसी भी क्रांति की नाव
तभी खेई जा सकती है आगे आसानी से
जब भरी हो नदी पर्याप्त स्तर तक पीड़ा - जल से
और भरा हो हमारे रक्त में आवेश भी
चप्पुओं को तेजी से चलाने का।
कहते हैं
पाप का घड़ा
तभी फूटता है
जब वह लबालब भर जाता है।
No comments:
Post a Comment